Book Title: Mahaguha ki Chetna
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 86
________________ जीवन की यही विशेषता है कि अन्तस् आनन्द, अन्तस् ऊर्जा की तरंगें उनके जीवन को शांत और गरिमापूर्ण बनाती हैं। अगर कभी किसी आत्मज्ञ या ध्यानी या गुरु के पास जाओ तो उनसे कुछ पूछना मत, बस उनके पास जाकर बैठ जाना। लेकिन तुम्हारी आदत, तुम उनसे धर्म, अध्यात्म, ध्यान आदि के सम्बन्ध में प्रश्न पूछने लगते हो। अब भला कोरे प्रश्नों के उत्तर से तुम कैसे जान पाओगे कि वह कितना ध्यानी, आध्यात्मिक या आत्मवादी है। यह काम तो कोई पंडित भी कर सकता है। और शायद ज्यादा अच्छी तरह, अधिक तर्कयुक्त ढंग से कर पाएगा क्योंकि शास्त्रों के प्रमाण भी उसके पास होंगे। लेकिन इससे वह बुद्धिवादी हो जाएगा, आत्मवादी न हो पाएगा। इसलिए सद्गुरु के पास जाकर प्रश्न पूछने की आवश्यकता नहीं है। केवल उनके पास जाकर मौन बैठ जाओ। उनकी चेतना की तरंगें तुम्हें शांत कर देंगी, तुम्हारे प्रश्नों का समाधान खुद-ब-खुद हो जाएगा। उनकी बहती हुई ऊर्जा तुम्हें आवेशित (Charge) कर देगी, तुम समझ लेना यही सद्गुरु है। तुम चाहे जितना खोजो, लेकिन जहाँ तुम्हें शांति की प्रतीति हो, जहाँ तुम्हारी चेतना में भी आंदोलन होने लगे, जिनकी तरंगें तुम्हें उद्वेलित कर दें कि तुम स्वयं की खोज में प्रवृत्त हो जाओ, तो जानना कि सदगुरु मिल गया। आत्मवान की पहचान ही यही है कि उसके सम्पर्क में आते ही अपूर्व शांति का अनुभव हो। ऐसी शांति जो संसार की कोई भी वस्तु नहीं दे पाई, वह परम शांति उसके पास उपलब्ध होती है। जिसकी चेतना जाग चुकी है, वह ही अन्तस के आह्लाद को उपलब्ध होता है। तुम्हारे भीतर आनन्द के निर्झर बह रहे हैं। तुम्हें बाहर आनन्द ढूंढ़ना होता है। कभी कहानी में, कभी उपन्यासों में, कभी फिल्मों में, कभी पिकनिक या तीर्थस्थलों पर जाकर तुम खुशियाँ खोजते रहते हो, लेकिन क्या इनसे हमेशा प्रसन्न रह पाते हो, यह सब तो क्षणिक हैं। जब तुम इनसे रूबरू होते हो, तो प्रसन्नता के सन्निकट होते हो, लेकिन इनसे दूर हटते ही यह प्रसन्नता खोने लगती है। लेकिन साधक कह रहा है कि तुम अपने भीतर जाओ, बस भीतर उतर जाओ, वहाँ आनन्द ही आनन्द है। तुम्हें खोजना नहीं है वहाँ सदा से विद्यमान है। तुम्हारी चेतना की शक्ति में आनन्द के स्रोत हैं। 'मुखरित होता मौन में, शाश्वत सोहनाद'-तब तुम मौन भी रहोगे तो वह मौन मुखर हो जाएगा। तुम्हारा आनन्द, तुम्हारा आह्लाद सोहनाद के रूप में बाहर आएगा। यह सोहनाद क्या है ? तीन शब्द हैं कोऽहं, सोऽहं और शिवोऽहं । कोऽहं-मैं कौन हूँ अध्यात्म की यात्रा कहाँ से प्रारम्भ हो, साधना के सोपान में यह जानना मुक्ति : प्राणिमात्र का अधिकार : : 77 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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