Book Title: Mahaguha ki Chetna
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 108
________________ जो छेदा गया बना मोती, जो काटा गया बना हीरा ।। वो नर है, जो है राम, वो नारी है जो सीता है। मिलता है जहाँ का प्यार उसे, औरों के जो आँसू पीता है ।। अगर तुम अपने प्रेम का विस्तार करते हो तो मौत तुम्हें मार नहीं पाएगी। तुम लोगों के दिलों में जीवित रहोगे । हर मानव से प्रेम हो, हो चैतन्य विकास । आत्मोत्सव के रंग में, भीगी हो हर सांस । मानव-मानव से प्रेम हो । प्राणी प्राणी से प्रेम हो । प्रेम का इतना विस्तार हो कि धरती, अंबर तक प्रेम पहुँच जाए। तुम एक के होकर नहीं, सारे संसार के होकर जीओ। तुम्हारी हर सांस में, हर धड़कन में आत्मोत्सव का रंग हो, शाश्वत का रंग हो । अन्तर - लहर की पुलक हो । कालचक्र की चाल में, बनते महल मसान । फिर मन में कैसा गिला, सदा रहे मुस्कान ।। अगर तुम्हारा मकान गिर गया है, तुम्हारे मकान में आग लग गई है, तो गिला किस बात का ? यह तो कालचक्र की चाल है । आज जहाँ पर महल खड़े हैं, कल वहाँ श्मशान थे और आज जहाँ मसान बने हुए हैं आने वाले कल में वहाँ महल खड़े हो जाएंगे। फिर मन में गिला किस बात का ? शिकायत कैसी । कहते हैं : एक मकान में भयंकर आग लग गई। मकान मालिक सहित परिवार के सारे लोग बाहर आ गए। मकान मालिक चीखने-चिल्लाने लगा। मकान के आसपास पानी की जितनी व्यवस्था थी, उस पानी से आग बुझाने के प्रयास किये जाने लगे। मकान मालिक को रोते-चिल्लाते देख एक व्यक्ति ने कहा- 'तुम क्यों रोते-चिल्लाते हो ? तुम्हारे बेटे ने कल ही तो मकान का दस लाख का बीमा करवाया है।' मकान मालिक यह सुनकर आश्वस्त हो गया और उसने मकान में लगी आग को बुझाने के सारे प्रयास भी छोड़ दिए। तभी उसका बेटा बाहर से आया। घर में लगी आग को देख वह हक्का-बक्का रह गया। उसने देखा कि उसके पिताजी आग को बुझाने के लिए कोई प्रयास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only प्रेम का विस्तार :: 99 www.jainelibrary.org

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