Book Title: Mahaguha ki Chetna
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 116
________________ चाहते हो वह सब हाथ से छिटक गया और हाथ में रह गई मुट्ठी भर फिसलती हुई रेत । जिसे खो जाना चाहिए उसे तुमने मजबूती से पकड़ रखा है और जो तुम्हारे हाथ में होना चाहिए था, वह दूर छिटका पड़ा है। कहा जाता है न 'ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या - इसे हमने बिल्कुल उल्टा कर दिया है। हमारे लिए तो जगत ही सत्य बन गया है । ब्रह्म का तो कहीं अता-पता नहीं है वह तो मानो मिथ्या हो गया है। ऐसा नहीं कि तुम्हें पता नहीं है लेकिन तुम जानबूझकर अनजान बने रहते हो । जिंदगी गले की फांस बनकर रह गई । 1 'पंक सना पंकज मिला, बदलें अब इतिहास' - जो पंकज पंक से निर्लिप्त मिलना चाहिए था, वह पंक सना ही मिला है और अब समय आ गया है कि इतिहास बदल डालें। तुम्हारी वृत्तियाँ जो तुम्हें हर बार संसार की ओर धकेलती हैं उनसे उपरत होने का समय आ गया है । तुम्हें मनुष्य जन्म मिला है, अब संसार की ओर से जाग्रत हो जाओ। तुम्हारा जीवन कमल जैसा है और संसार तो पंक है ही तुम इसमें जितना उलझते हो भीतर धंसते ही चले जाते हो । तुम्हारी जिंदगी इस संसार में धंसने के लिए नहीं है । यह सोचने जैसा है कि तुमने उलझकर पा भी क्या लिया? सांसारिक दृष्टि से भी सोचो तो अगर तुम्हारे पास धन, पद, प्रतिष्ठा, मकान सब कुछ है फिर भी क्या तुम संतुष्ट हो पाए ? अगर पाने को कुछ भी नहीं रह गया तो तुम कितने रिक्त हो जाओगे । अभी तो तुम दौड़ में शामिल घोड़े हो और जिस दिन तुम्हें मंजिल मिल जाएगी, फिर सोचा है, तुम क्या करोगे ? लेकिन तुम सोचते ही नहीं हो। क्योंकि जिस दिन यह सोच उभरेगा, तुम उदास हो जाओगे क्योंकि फिर होगा क्या, कुछ नहीं। अभी तो तुम सोचते ही नहीं हो, तुम्हें संसार का मिथ्यात्व आकर्षित करता है । लेकिन नहीं, अब समय आ गया है जब अपने विचारों की लगाम अपने हाथ में ले लो और मन के तुरंग को अपने हिसाब से आगे बढ़ाओ । 1 अवसर तुम्हारे सामने है इसे पकड़ लो और अपनी चेतना को पंक से बाहर निकालो। अपनी वृत्तियों को निरखो - परखो और उन्हें दिशा दो । क्रोध पर ही क्रोध कर लो, लोभ को उदारता की दिशा दो, माया को सत्य की ओर बढ़ लेने दो, राग को प्रेम का प्रवाह दो । करना था क्या कर चले, बनी गले की फांस । पंक सना पंकज मिला, बदलें अब इतिहास ।। Jain Educationa International साक्षी हों वर्तमान के 107 For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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