Book Title: Mahaguha ki Chetna
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 117
________________ हमारे जीवन का इतिहास अब बदल जाना चाहिए। जो हुआ उसे याद कर-करके तो हमने उसे गले में अटकी फांस बना लिया है। एक ऐसी फांस जो न गले से नीचे उतरती है, न बाहर निकलती है। त्रिशंकु की तरह अधर में हम लटकाये हैं, उलझाये हैं। निश्चय ही, हमें मिला है। मिलने के नाम पर जो मिला है, वह सौभाग्य-सूचक है, किन्तु एक ऐसा पंकज, एक ऐसा कमल मिला है, जो कर्दम सना, पंक सना पंकज है। अब बदलें हम जीवन की दिशा, चित्त की दशा। 'सच का अनुमोदन करें, दिखें न पर के दोष । जीवन चलना बांस पे, छट न जाए होश।'-अगर कभी किसी का अनुमोदन करना हो तो सत्य का ही अनुमोदन करें। बहुत हो चुका-झूठ पर झूठ के आयोजन होते रहे और हम उन्हीं पर चलते रहे। कितने धोखे खाए, कितनी ही बार पराजित हुए, लेकिन सत्य की ओर से आँख फेरे रहे। अब साधक कह रहा है एक बार सत्य की अनुमोदना करके भी देख लो। यह सत्य जीवन का सत्य है, रहस्यों का सत्य है, इनको भी परख कर देख लो। जो तुमने संसार में खोया है वह इस सत्य की अनुमोदना से पा जाओगे। इस सत्य को पाने के लिए दृष्टि अपनी ओर घुमानी होगी। अभी तक बाहर ही बाहर, दूसरों के ही दोष देखते रहे। लेकिन जब तुम सत्य की प्रतीति करोगे तो दूसरों के दोष दिखाई न देंगे। अभी तक तुम हमेशा दूसरों के दोष ही झांकते रहे हो। अब यह ताक-झांक अपनी ओर लगाओ। अपनी वृत्तियों को, अपने दोषों को देखो और उनका परिष्कार करो। देखना ही है तो दूसरों के गुण देखो, उनकी अच्छाइयाँ देखो और उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयास करो। कबीर कहते हैं बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। यह भी एक दृष्टि है जिसे दूसरों के अवगुण खोजने पर भी नहीं मिलते या जो अवगुणों में भी गुण खोज लेते हैं। और एक हम हैं कि अवगुणों का पुलिंदा लेकर ही चलते हैं और गुणों में भी अवगुण खोजते रहते हैं। हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम दूसरों के बीच में दखलंदाजी करें। मुझे याद है : एक बार दो दोस्त बातचीत कर रहे थे। धीमी बातचीत अचानक तनातनी में बदल गई। एक व्यक्ति वहाँ और आ गया। उन लोगों का झगड़ा बढ़ता ही गया। एक बोला, ऐसा चूंसा मारूंगा कि बत्तीसों दांत बाहर आ जाएंगे। दूसरे ने कहा, क्या बकता है, मैं ऐसा घूसा मारूंगा कि चौसठ 108 : : महागुहा की चेतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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