Book Title: Mahaguha ki Chetna
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 76
________________ नहीं किया। ध्यान की साधना आपको स्थितप्रज्ञ बनाती है। आपकी जागरूकता जगाती है। आप अपनी अन्तर्भावना और मनोदशा को पहचान सकने में समर्थ हो पाते हैं। हमारे मनोभाव इतने क्षीण हैं कि वर्षों का प्रेम क्षण में डगमगा जाता है। फिर इसे प्रेम भी कैसे कहा जा सकता है ? वह तो स्वार्थ ही प्रतीत होता है। ऐसा हुआ : एक बार दीपावली पर्व पर घर की साफ-सफाई हो रही थी। पति महोदय कुछ पुरानी पुस्तकें देख रहे थे। उनमें पत्नी के नाम तीस वर्ष पुराना पत्र मिल गया। उन महोदय का सारा अनुराग वर्षों के साथ सब धुल गया। वे लौट गए तीस वर्ष पहले और पत्नी बेचारी क्या सफाई दे ? यह है मनोभाव जिसका अब कुछ लेना-देना भी नहीं है, वही तुम्हें व्यथित कर देता है। मनोभाव और अन्तर्दशा बदल जाए तो गृहस्थ भी संन्यासी हो सकता है, अन्यथा अस्सी वर्ष का मुनि भी गर्त में गिर सकता है। मनोदशाओं के परिवर्तन के साथ वह निर्मल और पवित्र रह सकता है। भगवान कहते हैं तुम कभी किसी की मनोदशाओं को नहीं पहचान सकते। तुम बाहर से देखकर किसी को प्रणाम करोगे, बाहर से तुम उसे संत मानोगे, लेकिन नहीं जानते कि उसकी अन्तरदशा संस्कारित है या विकृत ! और कुछ ऐसे गृहस्थ हैं जो रंगीन परिधानों में भी निष्कलुष जीवन जी रहे हैं। फर्क मनोदशाओं का है, फर्क भावनाओं का है, फर्क भीतर के रूपान्तरण का है। जब आन्तरिक मनोदशा बदलती है, तो एक साधक, जो चालीस वर्षों से निरन्तर साधना कर रहा है, समता-वृत्ति में जी रहा था। एक छोटा-सा क्षण भर का क्रोध का निमित्त पा लेने के कारण मनोदशाएँ बदलती हैं और वह तापस जीवन की सांध्य वेला में मनोदशाओं और भावनाओं के बदल जाने के कारण अगले जन्म में चण्डकौशिक सर्प बनता है। इसलिए मात्र वेश-परिवर्तन कर मुनि बनने की बजाय अपनी भावदशा, मनोदशा में रूपान्तरण कर चेतना की दिव्यता प्राप्त करना ज्यादा लाभकारी है। आज के सूत्र यही संदेश दे रहे हैं कि जब तक भावदशा का विशोधन नहीं होता, मनोदशा शुद्ध नहीं होती तब तक संबोधि उपलब्ध नहीं हो पाएगी। भावदशा के बाहर जाने पर संसार निर्मित होता है और भावदशा के भीतर मुड़ने पर समाधि का मार्ग प्रशस्त होता है। समाधि की यात्रा में होने वाले अनुभव वर्णनातीत हैं। और जिसने इन अनुभवों को पाया, वे मौन हो गए। उनके शब्द उस सत्य की अभिव्यक्ति के लिए कम हो गए। वहाँ मामला नेति-नेति का हो गया। बुद्ध पुरुषों ने कहने का प्रयास भी किया, कहा भी, लेकिन पूर्ण __ सद्गुरु बांटे रोशनी : : 67 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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