Book Title: Mahaguha ki Chetna
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 74
________________ दे वहाँ तक उसका प्रकाश जा रहा है, अन्यथा दीपक आपको दिखाई न देगा। इस सृष्टि में तारे टिमटिमाते हुए दिखाई देते हैं । वे हमसे लाखों-करोड़ों प्रकाश-वर्ष दूर हैं, लेकिन ज्योति है तभी तो हमें नजर आते हैं। भले ही उनसे उजाला नहीं होता, लेकिन प्रकाश हमारी आँखों तक आ रहा है। अब तो विज्ञान ध्वनि-सम्बन्धी प्रयोग कर रहा है। हम जो भी बोलते हैं वह अस्तित्व में संग्रहित हो जाता है । हमारी ध्वनियाँ अंकित हो जाती हैं । निश्चित फ्रिक्वेंसी पर भेजी I गई तरंगों को हमारे रेडियो और टीवी सैट पकड़ लेते हैं और उनकी तकनीकी तरंगों को ध्वनि और आकृति में रूपाकार कर देती है । और तो और, अब विज्ञान प्रयासरत है कि महाभारत के युद्ध में जो कहा गया उसे ब्रह्माण्ड से एकत्रित किया जाए क्योंकि ध्वनि की तरंगें आज भी विद्यमान हैं। संजय ने धृतराष्ट्र को जो आँखों देखा हाल सुनाया था वह और कुछ नहीं, ध्वनि और आकृतियों की परातरंगें जो सम्पूर्ण विश्व में विस्तीर्ण हो रही थीं, जिन्हें संजय देखब्र-सुन पाए और धृतराष्ट्र को बता सके । यह प्रश्न है कि केवल संजय ही उसे क्यों पकड़ पाए ? स्वयं धृतराष्ट्र को यह अनुभूति क्यों नहीं हुई या अन्य कोई व्यक्ति यह कार्य क्यों नहीं कर सका? तो इसका एकमात्र कारण है संजय की चेतना ने वह अन्तर्दृष्टि पा ली थी जो हर प्रकार की संवेदना ग्रहण कर सकती थी । धृतराष्ट्र तो मोहांध थे और अन्य भी उस उच्चता को उपलब्ध नहीं हो पाए थे जो उच्चता, निष्कलुषता, पवित्रता और निर्मलता संजय के पास थी । राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर के संदेशों को एक दिन उन्हीं की आवाज में सुना जा सकेगा | विज्ञान स्वीकार कर चुका है कि सभी की ध्वनियाँ अस्तित्व में विद्यमान हैं। महावीर ने भी माना था कि चेतना की ध्वनि ब्रह्मांड में शाश्वत रूप से मौजूद रहती है, और अब विज्ञान भी खोज कर रहा है। वह दिन दूर नहीं है जब विज्ञान उन ध्वनियों को उपलब्ध करा देगा । संबोधि- सूत्र के पद बड़े जीवन्त हैं। सूत्र जिसने रचा, उसने आकाश में व्याप्त उन अदृश्य-ध्वनि तरंगों को ग्रहण किया होगा । इसलिए संबोधि - सूत्र वास्तव में अध्यात्म की संजीवनी है, कुंजी है। ध्यान की यात्रा में मनुष्य के विचार, बुद्धि और शरीर से अलग होकर इनके भीतर छिपी हुई दिव्यता को पाना है । जो ध्यान की यात्रा से गुजर जाता है वह अपने ही भीतर छिपे हुए अमृत जल को प्राप्त कर लेता है । 1 सद्गुरु बांटे रोशनी :: 65 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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