Book Title: Mahabandho Part 1
Author(s): Bhutbali, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 451
________________ ३२६ महाबंधे संजगुणा । एवं संघ० । सव्वत्थोवा उज्जीवं बंधगा जीवा । अबंधगा जीवा संखेजगुणा । सव्वत्थोवा तित्थयरं बंधगा जीवा । अबंधगा जीवा संखेञ्जगुणा | ३०२. एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि मज्झिमासु सव्वत्थोवा मणुसायुबंधगा जीवा । तिरिक्खायुबंधगा जीवा असंखेञ्जगुणा । दोष्णं आयुगस्स बंधगा जीवा विसेसाहिया | अबंधगा जीवा असंखेजगुणा । सव्वत्थोवा सत्तमाए पुढवीए मणुसगदि - मसाणुपुच्चि उच्चागोदाणं बंधगा जीवा । तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणुपुव्वि णीचागोदाणं गाजीवा असंखेजगुणा । दोण्णं बंधगा जीवा विसेसाहिया । अबंधगा जीवा णत्थि । सव्वत्थोवा तिरिक्खायुबंधगा जीवा, अबंधगा जीवा असंखेज्जगुणा । 1 ३०३. तिरिक्खेसु - सव्वत्थोवा थीणगिद्धि०३ अबंधगा जीवा । बंधगा जीवा अनंतगुणा । छदंसणा बंधगा जीवा विसेसाहिया । सव्वत्थोवा सादबंधगा जीवा । अदबंधगा जीवा संखेजगुणा । दोष्णं बंधगा जीवा विसेसाहिया । अबंधगा णत्थि । सव्वत्थोवा अपच्चक्खाणा ०४ अबंधगा जीवा । अनंताणुबं०४ अबंधगा असंखेजगुणा । मिच्छत्त-अवधगा जीवा विसे० | बंधगा जीवा अनंतगुणा । अनंताणु ०४ बंधगा जीवा विसेसा० । पच्चक्खागावरण ०४ (१) बंधगा जीवा विसेसा० । अडकसायाणं बंधगा जीवा विसेसाहिया । सव्वत्थोवा पुरिसवेदस्स बंधगा जीवा । इत्थिवेदस्स बंधगा जीवा गुणे हैं । इस प्रकार संहनन में भी जानना चाहिए । उद्योतके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं; अवन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । तीर्थंकर प्रकृतिके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं; अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । ३०२. इसी प्रकार सात पृथ्वियों में जानना चाहिए। विशेष यह है कि मध्यम पृथ्वियोंमें मनुष्यायु बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । तिर्यंचायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। दोनों आयुओं के बन्धक जीव विशेपाधिक हैं; अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । सातवीं पृथ्वी में - मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी तथा उच्च गोत्रके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । तिर्यंचगति, तिचानुपूर्वी तथा नीच गोत्र के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । दोनों के ( मनुष्यगति, तिर्यंचगति आदि ) बन्धक जीव विशेष अधिक हैं; अबन्धक नहीं हैं । तिर्यचायुके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं; अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । ३०३. तिर्यंचों में -- स्त्यानगृद्धिन्त्रिकके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं, बन्धक जीव अनन्त गुण हैं । ६ दर्शनावरणके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । सातावेदनीयके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं; असाताके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । दोनों के बन्धक जीव विशेष अधिक हैं; अबन्धक नहीं हैं । अप्रत्याख्यानावरण ४ के अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । अनन्तानुबन्धी ४ के अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । मिथ्यात्व के अबन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इसके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । ८ कषाय, 5 प्रत्याख्यानावरण तथा संज्वलन के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । विशेष- यहाँ प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धकके स्थान में अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक पाठ सम्यक् प्रतीत होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520