Book Title: Mahabandho Part 1
Author(s): Bhutbali, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 484
________________ पय डिबंधाहियारो ३५९ ओरालि. बंधगा जी. विसे । मिच्छत्तवंधगा जी० विसे । थीणगिद्धि ३ अणंताणु०४ बंधगा जीवा विसे० । अपचक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसे० । पच्चक्खाणा० बंध. जीवा विसे० । णिद्दापचला-बंधगा जीवा विस० । तेजाक० बंधगा जीवा विसे। भयदु० बंधगा जीवा विसे । कोध-संज०बंधगा जीवा विसे० | माणसं० बं० जीवा विसे । माया-सं० बंधगा जीवा विसे । लोभसं० बंधगा जीवा विसे० । पंचणा०, चदुदंस०, पंचंत०. बंधा तुल्ला विसेसाहिया। ___३२७. आदेसेण णेरइएसु-सव्वत्थोवा मणुसायु बंधगा जीवा । तित्थय० बंधगा जीवा असंखेज० । तिरिक्खायु-बंधगा जीवा असंखे । उच्चागो० बंधगा जी० संखेज० । मणुसगदिबंधगा जीवा संखेज० । पुरिसवे. बंधगा जीवा संखेज० । इथि० बंधगा जीवा संखेज० । साद-जस-हस्स-रदिबंधगा जीवा विसेसा० । णवुस० बंधगा जीवा संखेन्ज । असाद-अरदिसो० अजसगित्ति-बंधगा जीवा विसे० । तिरिक्खगदि-बंधगा जीवा विसेसा० । णीचागो. बंधगा जीवा विसेसा० । मिच्छत्तबंधगा जीवा विसेसाहिया। थीणगिद्धि-तिय-अणंताणुबंधि०४ बंधगा जीवा विसेसाहिया । सेसाणं पगदीणं तुल्ला विसेसाहिया । एवं पढमाए । पंचसु मज्झिमासु एवं चेव । णवरि उच्चागोदस्स बंधगा जीवा असंखेजगुणा । सत्तमाए पुढवीएहैं। नीच गोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । औदारिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्वके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। निद्रा, प्रचलाके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। तैजस, कार्मण शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। भय, जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। क्रोध-संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मान-संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। माया-संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक. है। लोभ-संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ५ अन्तरायके बन्धक जीव समान रूपसे विशेषाधिक हैं। . ३२७. आदेशसे–नार कियोंमें-मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। तीर्थकर प्रकृतिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तिर्यंचायुके बन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं। उच्च गोत्रके बन्धक जीव संख्यातगणे हैं। मनुष्यगतिक बन्धक जीव संख्यात गुणे हैं। पुरुषवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रावेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। साता-वेदनीय, यशःकीति, हास्य, रतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नपुंसकवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । असाता-वेदनीय, अरति, शोक, अयशःकीर्त्तिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। तियंचगतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नीच गोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्व के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। स्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव. विशेषाधिक हैं। शेष प्रकृतियोंमें बन्धक जाव समान रूपसे विशेष अधिक क्रमवाले हैं। इसी प्रकार प्रथम पृथ्वीमें जानना चाहिए। मध्यवर्ती ५ पृथ्चियोंमें अर्थात् दूसरीसे छठी पर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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