Book Title: Mahabandho Part 1
Author(s): Bhutbali, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 506
________________ पडबंधाहियारो ३८१ I । उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेज्जगुणा । णव सकवेदस्स उकस्सिया बंधगद्धा संखेज्जगुणा । बादर-अपात्तस्स तं चैव भाणिदव्वं । सुहुम चादर-पञ्जत्ताणं च तं चैव भंगो । बेइंदिय अपात्तस्स पुरिसवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखे० गुणा । तेइंदिय - अपजत्तस्स पुरिसवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा विसेसा हिया । चदुरिंदिय अपजत्तस्स पुरिसवेदस्स उकस्सिया बंधगद्धा विसेसा० । बेइंदिय- अपजत्तस्स इत्थवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संगुणा | इंदि-अपजत्तस्स इत्थवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा विसेसा० । चदुरिंदियअपजतस्स इत्थवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा विसेसा० । बेइंदिय- अपजत्तस्स ण सकवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखे० गुणा । तेइंदिय - अपज्जत्तस्स णवु सकवेदस्स उक्क० धगद्धा विसेसा० । चदुरिंदिय अपजत्तस्स वुसकवेदस्स उक्क० बंधगद्धा विसेसा० । एवं पत्तसु वि तिष्णं वेदाणं णेदव्वं । पंचिदिय-असण्णि-अपजत्तस्स पुरिस - वेदस्स उक० बंधगद्धा संखेजगुणा । इत्थवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखे० गुणा । ण सकवेदस्स उक्क० बंधगद्धा संखेजगुणा । पंचिंदिय-सण्णि-अपजत्तस्स तं चैव भाणिदव्वं । पंचिदिय असण-पजत्तस्स एसेव भंगो। पंचिदिय-सणि-पजत्तस्स तं चैव भंगो । 1 ३५१. हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सादासाद भंगो । चदुष्णं गदीणं बंधगद्धाओ जहणियाओ सरिसाओ थोवाओ । सुहुम-अपजत्त- मणुसगदि उक्कस्सिया बंधगद्धा बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । नपुंसक वेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । बादर- अपर्याप्तक- एकेन्द्रिय में - उपरोक्त ही भंग है। सूक्ष्म पर्याप्तक तथा बादर पर्याप्तक में-यही भंग जानना चाहिए । दोइन्द्रिय- अपर्याप्तक में - पुरुषवेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । त्रीन्द्रिय-अपर्याप्तक में - पुरुषवेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है । चौइन्द्रियअपर्याप्तक में - पुरुषवेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। दोइन्द्रिय- अपर्याप्तक में— स्त्रीवेदके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक में स्त्रीवेदके बन्धकका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। चौइन्द्रिय अपर्याप्तक में - स्त्रीवेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। दोइन्द्रिय अपर्याप्तक में - नपुंसक वेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । श्रीन्द्रिय अपर्याप्तक में – नपुंसक वेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। इसी प्रकार दोइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय पर्याप्तकों में तीन वेदोंका काल जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय-असंज्ञी-अपर्याप्तक में – पुरुषवेदके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । वेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । नपुंसक वेद के बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। पंचेन्द्रिय-संज्ञी अपर्याप्तक में- पूर्वोक्त भंग जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय-असंज्ञीपर्याप्तक में भी ऐसा ही जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय-संज्ञी - पर्याप्तक में भी पूर्वोक्त भंग' जानना चाहिए । ३५१. चौदह जीव- समासों में - हास्य- रति, अरति शोकके बन्धकोंका उत्कृष्ट तथा जघन्यकाल साता तथा असाता वेदनीय के समान जानना चाहिए । चौदह जीव-समासों में - चारों गतिके बन्धकोंका जघन्य काल समान रूपसे स्तोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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