Book Title: Mahabandho Part 1
Author(s): Bhutbali, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 517
________________ ३९२ ३५८, तेउ० वाउ०- आयुगवज्जाणं एक्कारसण्णं पगदीणं जहणिया बंधगद्धा सरिसा थोवा | आयु० जहणिया बंधगद्धा संखे० गुणा । [ उक्क० बंधग० संखे० गुणा | ] पुरिसवे उक्क बंधगद्धा संखे० गुणा । इत्थवे ० उक्कस्सि० बंधग० संखे० गुणा | साद-हस्स- रहि-जस० उक्क० बंधग० संखे० गुणा । असाद-अरदि-सो० अजस• उक्क० बंधगद्धा संखे० गुणा । स० उक्क बंधगद्धा विसेसा० । पंचमण० पंचवचि० वेउव्वि ० वेउव्वियमि० आहार० आहारमि० कम्मइग० अवगदवे० कोधादि०४ सासण० सम्मामिति साधेण णेदव्वं । णवरि कोघा०४ कसायाणं साधेदुण दव्वं । कसायकालो थोवो । उक्क० बंधगद्धा संखे० गुणा । ओरालि० ओरालिमि० पंचिंदिय-तिरिक्ख- अपजत्तभंगो । विभंगे- णिरयभंगो । आभि० सुद० ओधि० आयुगवज्जाणं अणं पगदीणं जहणिया बंधगद्धा सरिसा थोवा । आयु० जह० बंघगद्धा संखे० गुणा । उक्क० बंधगद्धा संखे० गुणा । साद-हस्स-रदि-जस० उक्क० बंधग० महा • ३५८. तेजकाय, वायुकाय में - आयुको छोड़कर ११ प्रकृतियोंके बन्धकोंका जघन्य काल समान रूप से स्तोक है। विशेष - अनुदिशसम्बन्धी पूर्वोक्त आठ प्रकृतियोंमें अर्थात् हास्य, रति, अरति, शोक, यशः कीर्ति, अयशःकीर्ति, साता, असाता में वेदत्रयको जोड़ने से ११ प्रकृतियाँ होती हैं । यहाँ वेदयका बन्ध होने से परिवर्तमान प्रकृतियों में उनको परिगणित किया है । तिचायुके बन्धकों का जघन्य काल संख्यातगुणा है । [ उत्कृष्ट बन्धकाल संख्यातगुणा है ।] पुरुषवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । स्त्रीवेदके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । साता, हास्य, रति, यशः कीर्त्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । असाता, अरति, शोक, अंयशःकीर्त्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। नपुंसक वेद के बन्धका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है । ५ मनोयोगी, ५ वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारकआहारक मिश्र योगी, कार्मण काययोगी, अपगतवेद, क्रोधादि चार कषाय, सासादनसम्यक्त्वी, सम्यक मिथ्यात्व में परिवर्तमान प्रकृतियों के बन्धकका बन्धकाल निकालकर जान लेना चाहिए | विशेष - क्रोधादि चार कषायों में विचार करके भंग जानना चाहिए। कषायका काल स्तोक है । बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । औदारिक तथा औदारिक मिश्रकाययोग के पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा अपर्याप्तक के समान भंग हैं। विभंगावधि में - नरकगति के समान भंग है अर्थात् वहाँ १५ प्रकृतियाँ हैं । आभिनिबोधिक ज्ञान, अवधिज्ञान में - आयुको छोड़कर शेष ८ प्रकृतियोंके बन्धकोंका जघन्य काल समान रूपसे रोक है । Jain Education International विशेष - यहाँ साता, हास्य, रति, अरति, शोक, असाता, यशःकीर्त्ति, अयशःकीर्त्ति ये परिवर्तमान प्रकृतियाँ हैं । आयुके बन्धकका जघन्य काल संख्यातगुणा है । उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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