Book Title: Mahabandho Part 1
Author(s): Bhutbali, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 499
________________ ३७४ महाबंधे बंधगा जीवा संखेजगुणा । मणुसग० बंधगा जीवा संखेजगुणा । पुरिसवे० बंधगा जीवा संखेजगु० । इथिवे. बंधगा संखेजगुणा । साद-हस्स-रदि-जस० बंधगा जीवा संखेजगु० । असाद-अरदि-सोग-अज्ज० बंधगा जीवा संखेज्जगुणा । णवुस० बंधगा जीवा संखेज्जगुणा । तिरिक्खगदि-बंधगा जीवा विसे० । णीचागो० बंधगा जीवा विसे । ओरालि. बंधगा जीवा विसे । मिच्छत्त-बंधगा जीवा विसे । थीणगिद्धि३ अणंताणुबंधि४ बंधगा जीवा विसेसाहिया । अपच्चक्खाणावर०४ बंधगा जी० विसे० । पच्चक्खाणावर०४ बं० जीवा विसे० । सेसाणं बंधगा सरिसा विसेसा । पम्माए-आहार० थोवा । मणुसाणु-बंधगा जीवा संखेजगुणा । तिरिक्खायु-बंध० जीवा असंखेजगु० । देवायु-बंधगा जीवा विसेसा० । मणुसग बंधगा जीवा संखेजगु० । इत्थिवे०. बं० जीवा संखेजगु० । णवुस० बंधगा जीवा संखेजगु० । तिरिक्खगदिबंधगा जी० विसे० । णीचागो० ६० जीवा विसे । ओरालि. बंधगा. जीवा विसे० । साद-हस्स-रदि-जस० बंधगा सरिमा असंखेजगुणा। असाद-अरदि-सो०-अन्जस० बंध० सरिसा संखेजगुणा । देवगदि-वेउन्वि० बंधगा जीवा विसे । उच्चागो० बंध० जी० विसे० । पुरिस० बंधगा जोवा विसे० । मिच्छत्त-बंधगा जीवा विसे । उवरि तेउभंगो। सुकाए-सव्वत्थोवा आहारस. बंधगा जीवा। मणुसायु-बंधगा जीवा wwnand बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदके बन्धक संख्यातगुणे हैं । साता, हास्य, रति, यश कीर्तिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। असाता, अरति, शोक, अयश कीर्तिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । नपुंसकवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। तियंचगतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नीचगोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। औदारिक शरीर के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्वके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। स्त्यानगद्धि ३अनन्तानबन्धी४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । शेष प्रकृतियोंके बन्धक जीव समानरूपसे विशेषाधिक हैं। __ पद्मलेश्यामें-आहारक शरीर के बन्धक जीव स्तोक हैं। मनुष्यायुके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। तिर्यंचायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । देवायुके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मनुष्यगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । नपुंसक वेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। तियं चगति के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नीचगोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। औदारिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। साता वेदनीय, हास्य, रति, यश कीर्तिके बन्धक. जीव समान रूपसे असंख्यातगुणे हैं। असाता, अरति, शोक, अयश कीर्ति के बन्धक जीव समान रूपसे संख्यातगुणे हैं। देवगति, वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। उच्चगोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। पुरुषवेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्व के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। आगेकी प्रकृतियोंमें अर्थात् स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ आदिमें तेजोलेश्याके समान भंग है। शुक्ललेश्यामें--आहारक शरीरके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। मनुष्यायुके बन्धक जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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