Book Title: Mahabandho Part 1
Author(s): Bhutbali, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 446
________________ [ अप्पाबहुगपरूवणा] २६३. अप्पाबहुगं दुविधं, जीव-अप्पाबहुगं चेव, अद्धा-अप्पाबहुगं चेव । तत्थ जीव-अप्पाबहुगं दुविधं, सत्थाणं परत्थाणं च । सत्थाण-जीवअप्पाबहुगे दुविहो णिद्देसो ओषेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सव्वत्थोवा पंचणाणावरणं अबंधगा जीवा, [बंधगा] अणंतगुणा । सव्वत्थोवा चदुदंसणावरणाणं अबंधगा जीवा । णिहापचलाणं अबंधगा [अल्पबहुत्व ] २६३. अल्पबहुत्वके दो भेद हैं - एक जीव अल्पबहुत्व, दूसरा काल अल्पबहुत्व । जीव अल्पबहुत्व भी स्वस्थान जीव अल्पबहुत्व और परस्थान जीव अल्पबहुत्वके भेदसे दो प्रकार है। विशेष-अल्पता, बहुलताका वर्णन करनेवाला अनुगम अल्पबहुत्वानुगम है। ओघवर्णनमें अभेद दृष्टिको ग्रहण करनेवाले द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन लिया जाता है। आदेश वर्णनमें भेदयुक्त दृष्टिको ग्रहण करनेवाले पर्यायार्थिक नयका आश्रय लिया गया है। ___ यह अल्पबहुत्व नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भावके भेदसे चार प्रकारका है। द्रव्य अल्पबहुत्व आगम, नोआगमके भेदसे दो प्रकार है। जो अल्पबहुत्व विषयक प्राभृतको जाननेवाला है, परन्तु वर्तमानमें उसके उपयोगसे रहित है, उसे आगमद्रव्य अल्पबहुत्व कहते हैं। नोआगम द्रव्य अल्पबहुत्व ज्ञायक शरीर, भावी और तव्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारका है। इसमें तद्व्यतिरिक्त अल्पबहुत्व सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे त्रय युक्त है। इनमें जीव द्रव्यविषयक अल्पबहुत्व सचित्त है-"जीवदव्यप्पाबहुरं सचित्तं"। शेष द्रव्य विषयक अल्पबहुत्व अचित्त है । दोनोंका अल्पबहुत्व मिश्र है। प्रश्न-“एदेसु अप्पाबहुपसु केण पयद"-इन अल्पबहुत्वोंमें-से प्रकृतमें किससे प्रबोजन है ? उत्तर-'सचित्तदव्यप्पाबहुएण पयदं'-यहाँ सचित्त द्रव्य अल्पबहुत्वसे प्रयोजन है। इस अल्पबहुत्व प्ररूपणाका सबके अन्त में निरूपण किया गया है, क्योंकि वह पूर्वोक्त सभी अनुपयोग द्वारोंसे सम्बद्ध है। स्वस्थान जीव अल्पबहुत्वमें ओघ तथा आदेशसे दो प्रकार निर्देश किया जाता है। ___ ओघसे-५ ज्ञानावरणके अबन्धक जीव सबसे कम है। [बन्धक ] जीव उनसे अनन्तगुणे हैं। चार दर्शनावरणके अबन्धक जीव सबसे कम हैं। निद्रा, प्रचलाके अबन्धक जीव १. "अप्पं च बहुरं च अप्पाबहुमाणि । तेसिमणुगमो अप्पाबहुआणुगमो। तेण अप्पाबहुआणुगमेण जिद्देसो दुविहो होदि । ओघो आदेसो ति । संगहिदवयणकलावो दम्वट्ठियणिबंधणो ओघो णाम । असंगहिदबयणकलामो पुब्बिलत्यावयवणिबंधो पज्जवट्रियणिबंधो आदेसो णाम।"-ध०टी०,अप्पाबहु० पृ० २४३ । मल्पबहुत्वमन्योन्यापेक्षया विशेषप्रतिपत्तिः -स० सि०, पृ० १० । २. एदेसि पच्छा अप्पाबहुगाणुगमो परूविदो, सम्बाणिबोगद्दारेसु परिवदत्तादो-खु० ब०,सामित्ताणुगम टीका,पृ०२७। ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520