Book Title: Labdhisara
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ - इस ग्रंथके कर्ता श्रीनेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्तीका जीवन-चरित्र जीवकांड भाषाटीकाकी भूमिकामें विस्तारसे लिखा गया है इससे यहां लिखनेकी विशेष आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसके भाषाटीकाकारके विषयमें कुछ लिखना है जोकि वे स्वयं लिखगये हैं। ___ इस ग्रंथकी भाषाटीका रचनेवाले श्रीमद्विद्वद्वर्य टोडरमल्लजी हैं। इनकी जन्मभूमि ढूंढार देशमें जयपुरनगर है । उन्होंने लिखा है "रायमल्लनामके साधर्मी भाईकी प्रेरणासे संवत् १८१८ माघसुदि पंचमीके दिन सम्यग्ज्ञानचंद्रिका नामकी भाषाटीका बनाके पूर्ण की" । इससे उनका जन्म संवत् भी लगभग अठारह सौके है। ___ इसकी भाषाटीकाका बहुतविस्तार होनेसे सबका मुद्रित करना दुस्साध्य समझकर श्रीपरमश्रुतप्रभावकमंडलके ऑनरेरी सेक्रेटरी श्रीमान् शा० रेवाशंकर जगजीवन जह्वेरीकी प्रेरणासे मैंने संस्कृतछाया तथा संक्षिप्त हिंदी भाषाटीका तयार की है । यद्यपि इस भाषानुवादमें सब विषयोंका खुलासा नहीं आया है तो भी मैं समझता हूं कि मूलार्थ कहीं नहीं छोड़ा गया है । सब विषयोंका खुलासा इसकी बड़ी भाषाटीकामें ही होसकता है । इस समयके अनुकूल गाथा सूची और विषयसूची भी लगादी गई हैं इसलिये पाठकोंको वांचनेमें सुगमता होसकती है। ___ यह भाषाटीका बड़ी टीकामें प्रवेश होनेकेलिये सहायकरूप अवश्य होगी यह मैं आशा करता हूं। तथा तत्त्वज्ञानी स्वर्गीय श्रीमान् रायचंद्रजी द्वारा स्थापित श्रीपरमश्रुतप्रभावकमंडलकी तरफसे इस ग्रंथका जो उद्धार हुआ है इसलिये उक्तमंडलके सेक्रेटरी तथा अन्य सभ्योंको कोटिशः धन्यवाद देता हूं कि जिन्होंने उत्साहित होकर इस महान ग्रंथका प्रकाशन कराके भव्यजीवोंका महान् उपकार किया है । द्वितीय धन्यवाद श्रीमान् स्याद्वादवारिधि गुरुवर पं० गोपालदासजी वरैयाको दिया जाता है कि जिन्होंके ज्ञानदानकी सहायता पाकर उनके चरणकमलोंकी कृपासे अपनी बुद्धिके अनुसार यह संक्षिप्त भाषाटीका निर्विघ्न समाप्त कीगई है। इस ग्रंथकी तथा गोमटसार ग्रंथकी विशेष संज्ञाओंके तथा गणितके जाननेके लिये इसी मंडलकी तरफसे इन्हीं नेमिचंद्राचार्यका त्रिलोकसार ग्रंथ भी संस्कृतटीका तथा भाषाटीकासहित शीघ्र ही प्रकाशित किया जायगा। अब अंतमें पाठकोंसे मेरी यह प्रार्थना है कि जो प्रमादसे, दृष्टिदोषसे तथा बुद्धिकी मंदतासे कहींपर अशुद्धियां रहगई हों तो पाठकगण मेरे ऊपर क्षमा करके शुद्ध करते हुए पढें । क्योंकि ऐसे कठिनविषयमें अशुद्धियोंका रहजाना संभव है । इसतरह धन्यवाद पूर्वक प्रार्थना करता हुआ इस प्रस्तावनाको समाप्त करता हूं। कृतं पल्लवितेन विज्ञेषु । जैनग्रन्थ उद्धारककार्यालय खत्तरगली हौदावाड़ी। जैनसमाजका सेवक. ___पोष्ट गिरगांव-बंबई. मनोहरलाल आसौज सुदि १५ वी. सं० २४४२. . पाढम ( मैंनपुरी ) निवासी

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 192