Book Title: Kyamkhanrasa Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir View full book textPage 8
________________ क्याम खां रासा भाषाका यह सोरठ-मारू नाम विल्कुल नया और विचारणीय है। मारू का अर्थ तो स्पष्ट ही है कि जिसका सम्बन्ध मरूभूमिसे हो वह मारू है, पर इसके साथ सोरठ शब्दका क्या सबन्ध है? हमारा खयाल है कि कविको सोरठ शब्दसे वह भाषाप्रदेश अभिप्रेत है जिसे वर्तमानमें गुजराती भाषा-भाषी प्रान्त कहा जाता है। जिस प्रकार भौगोलिक दृष्टिसे सोरठका प्रदेश प्राचीन कालसे सर्वत्र विश्रुत रहा है इसी तरह वहाकी जनभाषा भी, जो कि वर्तमानमे तो वह गुजरातीके नामसे ही सर्वत्र प्रसिद्ध हो रही है, उस समय, सोरठके नामसे प्रसिद्धिमे रही हो और फतहपुरके प्रदेशके लोगोकी जो बोली रही हो उसमे मारू और सोरठ की वोलीका विशिष्ट समिश्रण रहा हुआ होनेसे कविने उसे इस नामसे उल्लिखित किया हो। ___ आधुनिक राजस्थानी और गुजराती दोनो भापायें मूलमें एक थी। मुगलोके शासन कालके मध्य समयसे धीरे-धीरे इनमे कुछ पार्थक्य होने लगा। भाषावैज्ञानिकोने प्राचीन राजस्थानी एव गुजरातीको एकरूप मान कर उसके लिये प्राचीन पश्चिमीय राजस्थानी ऐसा शास्त्रीय नाम निश्चित किया है। लेकिन इस नामनिर्देशमें बहुतसे विद्वानोको सन्तोष नही है। अत. वे कोई ऐसा नाम निर्देश करना-कराना चाहते है जिससे राजस्थान और गुजरातकी भौगोलिक, सास्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सयुक्तता और सहकारिताका स्पष्ट बोध हो सके। गुजरातके एक विशिष्ट कवि, लेखक, विचारक और विवेचक विद्वान् श्रीयुत उमाशकर जोशीने इसके लिये मारू-गर्जर शब्दका प्रयोग करना पसद किया है। उक्त रूपमती आख्यानके कर्ता द्वारा किया गया सोरठ मारू शब्दका प्रयोग देख कर हमे इस विषयमे विशेष प्रेरणा मिली है और हमारी कल्पनामे कवि उमाशकरजी द्वारा सूचित राजस्थान और गुजरात की सास्कृतिक एकताका सारसूचक मारूनगर्जर शब्द प्रयोग ठीक उपयुक्त लगता है। राजस्थान और गुजरातके विशिष्ट भाषाविद् विद्वान् इस पर अवश्य विचार करे। इस विषयमें हम अपने कुछ विशेष विचार किसी अन्य अवसर पर प्रकट करना चाहते है। हमारी कामना है कि कवि जानकी अन्य रचनाए भी इसी तरह सुसपादित हो कर प्रकाशमें आनी चाहिये। सर्वोदय साधना आश्रम, -जिनविजय मुनि चदेरीया ता. १०-३-५३Page Navigation
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