Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 9
________________ क्यामखां रासाके कर्ता कविवर जान और उनके ग्रन्थ हिन्दी साहित्यमें जान कविके क्यामखां रासो आदि ग्रन्योका सबसे पहला उल्लेख राजस्थान विवदरत्न परम साहित्यनुरागी व संत साहित्यके अद्वितीय संग्राहक स्वर्गीय पुरोहित हरिनारायणजीने, १५ वर्ष हुए अपनी "सुन्दर ग्रन्थावली" में किया था । सन्तकवि सुन्दरदास सं० १६८२ में फतहपुर पधारे, और अधिकतर यहीं रहने लगे । अत. फतहपुरके विद्यानुरागी नवाबोका आपके सम्पर्कमें श्राना स्वाभाविक था। इसी प्रसंगसे पुरोहितजीने अलफखां व उनके रचित चार ग्रंथ, फतहपुरके नवाबोंके नाम एवं क्यासरासोका उल्लेख किया था । यथा ___ "सुन्दरदासजी फतहपुरमें नवाब अलफखा के समयमें आगये थे । सम्भव है यहां उस वीर और कवि नवाबसे इनका मिलना हुआ हो, क्योकि नवाब सम्वत् विक्रमी १६९३ (सन् हिजरी १०५३ रमजान की २८ ता. को) तलवाडेके युद्ध में बडी वीरतासे वीरगतिको प्राप्त हुआ था। यह महामहिम नवाव अलफखाँ प्रायः शाही खिदमतमें रहा करता था। यह बडी-बढी मुहिमों और युद्धोंमे भेजा जाता था और प्रायः सदा विजयी रहा करता था । परन्तु शूरवीर होकर भी कहते हैं कि यह एक अच्छा कवि भी था, और हिन्दी काव्यमें कई ग्रन्थ भी बनाये हैं जो प्रायः शेखावटीके अन्दर प्रसिद्ध हैं।" आपने टिप्पणीमे लिखा है कि अलफखाँ-काव्योपनाम जान कविके बनाये हुए चार ग्रन्थ १. रतनावली, २. सतवंतीसत, ३. मदनविनोद, ४. कविवल्लभ हैं, जो हमारे संग्रहमे हैं। (पृष्ठ ३६-३७) पृष्ठ चालीसकी टिप्पणीमें उपयुक्त टिप्पणीकी बातको पुनः दुहराते हुए क्यामरासा के रचियताका नाम 'नेडमतखाँ बतलाया था। यथा - "अलफखाँ फतहपुरके नवाबोंमें नामी वीर और कवि हुश्रा । यही जान कवि था, जिसने कई ग्रन्थ रचे थे। उनमेंसे चार ग्रन्थ हमारे संग्रहमें भी विद्यमान हैं। इसके छोटे बेटे "नेड़तमतखाँ" ने कायमरासा वनाया । इसहीके अनुसार नजमुद्दीन पीरजादे मुझणूं फतहपुरने "शजतुल मुसलमीन"फारसीमें तवारीख लिखी, जिसकी नकल झूम)में हमने करवायी थी परन्तु वह मांगकर कोई ले गया था लो अबतक लौटाई नहीं। इसीके आधारपर "तारीख जिहानी" हैदराबाददक्षिणमें बनी है । नवाब नं. १२ कामयावखाँके समयमें शेखावत वीर शिवसिंहजीने सं. वि. १७८८ में फतहपुरको तलवारके जोरसे छीन लिया । तबसे शेखावतोंके अधिकारमें है । (वाकियात कौम काइम खानी" "फरू त्तवारीख" तथा "शिखर वंशोत्पत्ति पीढ़ी वार्तिक" एवं सीकरका इतिहास ।) पुरोहितजीके पश्चात् धूमकेतुके सम्पादक पं. शिवशेखर द्विवेदीने धूमकेतुके तीसरे अंक (अगस्त सन् १९३८) में तीन ग्रन्थोंका परिचय प्रकाशित करते हुए जानका नाम अलफखाँ १. फतहपुर परिचयके पृष्ट १३६ मे भी इसी भ्रान्त परम्परा को अपनाया गया है। २. फतहपुर परिचय ग्रन्थमें नियामतखों लिखा है।

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