Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ क्याम खां रासा कवि जान राजस्थानका एक बडा और प्रसिद्ध कवि हो गया। यद्यपि जाति और धर्मसे वह मुसलमान था लेकिन उसकी रचनाओके पढनेसे मालूम होता है कि वह भाव और भक्तिकी दृष्टिसे प्राय हिन्दु था। उसका शरीर मुस्लिम था परन्तु आत्मा हिन्दु था। यदि उसने अपनी रचनाओमे अपने व्यक्तित्वके परिचायक कोई उल्लेख न किये होते तो पाठकोको इन रचनाओका कर्ता कोई हिन्दु-इतर है ऐसी कल्पनाका होना भी असंभवसा लगता। कविकी विविध प्रकारकी और विस्तृत सख्यावाली रचनाओके विषयमे सपादक मित्रोने यथेष्ट प्रकाश डाला है। इससे ज्ञात होता है कि कवि अपने समयमे राजस्थानका एक प्रमुख साहित्यकार रहा है। शायद इतनी विविध रचनाए, उस समयके अन्य किसी हिंदु या जैन विद्वान्ने नही की है। कविका अनेक विषयो पर अच्छा अधिकार मालूम देता है। भाषा और भावो पर तो उसका बडा ही प्रभुत्व प्रतीत हो रहा है। लोक भाषाके ग्रन्थोकी प्रतिलिपि करनेवाले लेखकोकी लिखनपद्धति प्राय. शिथिल और अनियमित होती थी, इस लिये ऐसी रचनाओमें लेखनभ्रष्टताके कारण भापाभ्रष्टताका प्राचुर्य उपलब्ध होना स्वाभाविक है और इसी कारणसे किसी भाषा कविकी कृतिका पूर्णतया विशुद्ध रूपमें प्राप्त होना असभवसा रहता है। परतु यदि ऐसी प्राचीन रचनाओके दो चार भिन्न स्वरूपके अच्छे प्रत्यन्तर मिल जाते है तो उनके आधार पर विशेषज्ञ विद्वान किसी भी रचनाकी विशुद्ध वाचना ठीक तरहसे उपस्थित कर सकता है। जैसा कि हमने ऊपर सूचित किया है प्रस्तुत 'क्यामखा रासा' उक्त एक ही प्रतिलिपिके आधार पर मुद्रित किया गया है और इससे इसमें भाषा, छन्द, वर्णसयोजन आदिकी दृष्टिसे बहुतसे स्थान शिथिलता और अशुद्धताके उदाहरण स्वरूप दृष्टिगोचर होते है परतु हमारा विश्वास है कि यदि दो-एक अन्य प्रत्यन्तरोके आधार पर, इसकी विशुद्ध वाचना तैयार की जाय तो, जान कविकी यह कृति एक उत्तम कोटिकी साहित्यिक रचना सिद्ध होगी। उस समयके हिन्दु या जैन कविकी कोई रचना, शायद ही कवि जानकी रचनाकी तुलनामें स्पर्धा करने योग्य सिद्ध हो। कविका स्वभाव बहुत उदार है। वह राजपूत जातिकी वीरताका वडा प्रशसक है। अपने चरित्रनायकके विपक्षियोकी वीरताका भी वह अच्छा सहानुभूतिपूर्वक वर्णन करता है। क्यामखानी वगवाले, वास्तवमें चौहान वशीय राजपूत थे और इसलिये कवि चौहान कुलका गौरव-गान करनेमे अपना गर्व समझता है। वह चौहान कुलको राजपूत जातिमें सबसे बड़ा गौरवशाली कुल मानता है। उसके विचारमे जिसी जात रजपूत की, सगरे हिंदसतान । सबमें निहचै जानियो, बडौ गोत चहुवांन । चाहवान याते कहो चहूं कूटमें आन । सगरे जंवू दीपमें सम को गोत न मान ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 187