Book Title: Kumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Author(s): Kubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publisher: Kumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
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श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन
( दरिशन ताहरु अति भलु ) पासजिणद जुहारिये, अहनिश सुर सेवे पाया रे;
नील कमलदल शामळो, त्रिभुवन जन केरा राया रे, पास ॥१॥ पुरीसादानी गुणनोलो, श्री अश्वसेन मल्हारो रे;
बामा उर सर हसलो, राणी प्रभावती भरथारो रे, पास ॥२॥
वाडी पुखर पासजी, चोमुख निज घर सोहे रे,
नारगपूर नळियामणो, पंचासरो प्रभु मन मोहे रे, पास ॥३॥
शेरीसो, शखेसरो, खमायते थंभण पासो रे;
अमदावादे शामळो, चितामणि पूरे आशो रे, पास ॥४॥ वरकाणो फलवृद्धि पुरे, जेसलमेर कर हेडे रे;
आबू शिखर सोहामणो, दिन दिन सुखसपत्ती तेडे रे, पास ॥५॥ जीरावलो सोवनगिरे, अलवरगढ रावण राजे रे, ___ गोडी प्रभु महिमा घणो, जस नामे सकट भांजे फुभोजगिरी दीपतो, श्री त्रेवीसमो जिनराज;
भाव भगतिशं पूजतां, रोझे मनवाछित काज रे, पाम ॥ ७ ॥ तुम दरिसणमें पामियो, भेक विनतडी अवधारो रे,
भवसागर बिहामणो, करुणा कर भव पार उतारो रे, पास ॥ ८ ॥ चिन्तामणि सुरतर समो, जगजीवन जिनचदो रे, रतननिधान सदा नमे, करजोडी नित गुणकदो रे, पास ॥ ९ ॥
( श्री जिनेन्द्र स्तवनादि काव्य सदोहमांथी )
८८
[ श्री कुमोजगिरी शताद्वी महोत्सव

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