Book Title: Kumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Author(s): Kubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publisher: Kumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
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* श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जिन स्तवन *
(सनेही वीरजी जयकारी रे) तेवीसमा श्री जिनराज रे, नामे सुधरे सवि काज रे;
लहे लीला लच्छी समाज, शंखेश्वर पासजी जयकारी रे, जूनी मूरती मोहनगारी शखेश्वर ॥ १ ॥ ____ अतीत चोवीसी मोझार रे, नवमा दामोदर सार रे,
जिनराज जगत शणगार, शखेश्वर ॥२॥ आपाढी श्रावक गुणधारी रे, जिनवाणी सुणी मनोहारी रे;
पास तीरथे मुक्ति सभारी, शखेश्वर ॥ ३ ॥ प्रभु पडिमा भरावी रगे रे, शशिसूरज पूजी उमगे रे,
नागेंद्र घणे उछरगे, शखेश्वर ।। ४ ।। सुरनर विद्याधर वृद रे, करे सेवना अधिक आनद रे,
यदुवा रे पूजे धरणेद, शखेश्वर ।। ५ ।। यदुसेना जराये भराणी रे, पूछी नेमिने सारंगपाणि रे;
करे भक्तिभाव चित्त आणी, शखेश्वर ॥६॥ जरासिंधु जरादु ख भारी रे, प्रभु तुम विण कोण निस्तारी रे;
, शश्वर ॥७॥ हरि अठुमे ते धरणोंद रे, आप्यो पास प्रभु सुखकद रे; ..
जिन न्हवणे गयु दु ख दद, शखेश्वर ।। ८ ।। शखेश्वरे आव्या जेण रे, शंखेश्वर नाम छ तेण रे;
महिमा गवरावे कोण, खेश्वर ॥ ९ ॥ द्वारामती अस्थिर जाणी रे, बढियारमाही गणखाणी रे;
शंखेश्वर भूमि प्रमाणी, शर्खश्वर ॥१०॥ मध्य लोक ओक करी खास रे, पूरे अण्य भवननी आश रे,
दुश्मननी काढे काश, शखेश्वर ॥११॥ पद्मावती परचो पूरे रे, धरणेद्र विघन सवि चूरे रे;
सेवकनु वधारे नर, शखेश्वर ॥१२॥ श्री जिन उत्तम पद ध्यावे रे, ते परम महोदय पावे रे,
कवि रुपविजय गुण गावे, शखेश्वर ।।१३।। (श्री जिनेद्र नवनादी काव्य मदोहमाथी )
[ श्री कुभोनगिरी शताब्दी महोत्सव

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