Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ सप्टेम्बर २०१० आचारांग उपांग जे, सूत्र उवाइ मोझार । छे वर्णव विस्तारथी, पण कहुं लेश विच्यार ||४|| सांभलता सुख श्रवणलें, हइडे राग उद्दाम । सुमति चालस्यें मलपता, कुमति चलें मुख श्याम ॥५॥ जिम जिन साम्हइयुं कर्यु, तिम करवुं मुनिराय । जे देखी भद्रक भवि, पूर्व प्रतीत ठराय ||६|| प्रभु प्रणम्या तिणें प्राणी, प्रणमें जेह मुणिन्द | आणाधर मुनि हेलिया, तिणें नवि मान्या जिणन्द ||७|| ते माटे गुणवन्तनें, करज्यो भवि बहुमान । हवे सुणज्यो कोणीक तणी, चम्पा नयरी प्रधान ॥८॥ ढाल - १ थां परि वारि मांका साहिबा, कम्बल मत भज्यो । ओ देशी ॥ चम्पा चम्पक मालती, नन्दन वन शोभा । छंडी चपलता लक्षमी, रहि छे. थिर थोभा ||१|| चम्पा० || मुख्य सुभद्रा धारणी, आदि बहु राणी । दोय नाम छें जुजूआ, पण अक पटराणी ॥२॥ चम्पा० ॥ धनवन्ता व्यवहारिया, वर मन्दिर वसिया । वणज करे परदेशना, वेपारी रसिया ||३|| चम्पा० ॥ सात भुई आवासनी, घर श्रेणी उजलियो । उभी उपर नारियो, झलके विजलियो ||४|| चम्पा० ॥ भोगी मन्दिर नाचती, वेश्या सुन्दरियो । कोकिलकण्ठ हरावती, जाणे देव कुंमरियो ||५|| चम्पा० || मेढी माल चहुरें सदा, रस गीत सवाया । कौतक कौतकिया जुई, नट भाट भवाया || ६ || चम्पा० ॥ सुखिया लोक वसे घणा, न लहें दिन राति । जिन प्रासादे पूजता, धरमी परभाति ॥७॥ चम्पा० ॥ अरिहा च्यैत्य घणा तिहां, नाकीघर माला । याचकने संतोषवा, बहुली दान शाला ॥ ८ ॥ चम्पा० ॥ ७७

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