Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ ७६ अनुसन्धान ५२ ढा. ९, दूहो-६ 'कल्पतरुस्युं अलंकर्यो'मां स्युं नो अर्थ 'नी जेम' (=इव) अने 'आव्या मंगलशब्दस्यु'मां स्युं नो अर्थ साथे (=सह) आ बन्ने प्रयोगो ओक ज दूहामां साथे आपी दीधा छे. 'आठ मंगल आगे चले, प्रथम परमानन्द' (ढा. ९/३) सामैया साथे कोणिक राजा प्रभु पासे पहोंचे ते पहेला ज तेमनो आनन्द आगळ दोडे छे. अहिं राजानो प्रभु दर्शन माटेनो तलसाट वर्णवता कविले कह्यु के कोणिकना हैये प्रभुभक्ति उछळती हती. ___'भव अटवीमां रे रजल्यो प्राणीयो, नरक नीगोदे खंतोरे' (ढा. १०/ २) आ कथनीयने आगळ उपमा अने निदर्शनाथी समजावीने करुणरसमां अभिवृद्धि करी छे. आ सम्पूर्ण १०मी ढाल शान्तरसनी अद्भुत अभिव्यक्ति करे छे. अन्ते शान्तरसनुं प्रतिपादन करवा द्वारा अq दर्शित थतुं लागे छे के अन्ते तो उपादेय शान्तरस ज छे. ___ढाल-११ मां कवि हर्षपूर्वक कोणिक महाराजा जेवं सामैयुं करवानो उपदेश आप्यो छे. अने पोतानी गुरु परम्परा-पं. सत्यविजयजी-कपुरविजयजीखीमाविजयजी-जसविजयजी-शुभविजयजी दर्शावी छे. आ कृति रचना माटेनो हेतु वहोरा डोसाना पुत्र जेठा, तेमना पुत्र जयराजभाईनी विनन्तिथी श्रीवीरविजयजी म.सा.अ आ साम्हैयुं रच्युं छे. (संवत १८६४) अने आ 'साम्हैयु' सूत्रवचननी फूलमाळाओथी मघमघे छे. जेने जयराजभाईले उल्लासपूर्वक कण्ठमां धारण करी छे. ॥६॥ अथ साहमइयुं लिख्यते ॥ ॥ दुहा ॥ विमल वचन रस वरसती, सरसति प्रणमी पाय । पुरिसादाणी पासजी, संखेश्वर सुपसाय ॥१॥ श्री शुभविजय विजयकु(क)रु, सदगुरु चरण पसाय । साम्हइयुं तिम वरणवू, जिम कर्यु कोणीक राय ।।२।। साम्हइयां जिननां कर्यां, श्रेणीक प्रमुख नरेश ।। सूत्र-सूत्रे तस साखि छे, जहा कोणीक विशेस ॥३॥

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