Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ अनुसन्धान ५२ ते वनखण्ड विचालें मोटो, वृक्ष अशोक रूपालो रे । आवल बावल डाभ रहित छे, मूल कन्द विस्तारो रे ॥१४॥ चतुरो० ॥ पृथवीसिला पट मान प्रमाणे, ते तरू हेठि वदीता रे । काजल केश कसोटी जेहवी, गणधर ओपम देता रे ॥१५॥ चतुरो० ॥ आठ खुणाली वृषभ तुरग नर, मगर चमरी चितरियां रे । कुसुमने भार नमी तरू डाल, च्यार दिशे विस्तरियां रे ॥१६॥ चतुरो० ॥ झंकारारव भमरा-भमरी, कवि मतिइं रस चखियां रे । मंगल आठ रतनमयी शाखा, शाखाई आलखियां रे ॥१७॥ चतुरो० ॥ पंचवरण ध्वज झाझा झलके, वज्ररतनमइ दन्डो रे । चलकंता चामर ने घण्टा-युगला नाद प्रचण्डो रे ॥१८॥ चतुरो० ॥ शतपत्रादिक कमल घरां, सर्व रतनमइ ज्योती रे । सुन्दरता तेहनी सी कहिइं, आंखडी हरखे जोती रे ॥१९॥ चतुरो० ॥ चम्पक तिलक अशोक तमाल, हिंताला धव तालो रे । दाडिम फणसा आम्बा केरी, फरती श्रेणि रसालो रे ॥२०॥ चतुरो० ॥ साथ सहेलीनी मली टोली, रमणीक भूमी कहिइं रे । मीत्र वरग ने दम्पती बेठां, ठाम ठाम तिहां लहिइं रे ॥२१॥ चतुरो० ॥ वन शुभ शोभाथी लज्जाणुं, नन्दन सुरगिरी सेवे रे । ओ वन जोता सुर अनिमेष, वीर ते उपम देवे रे ॥२२॥ चतुरो० ॥ सूत्र - ४-५ ॥ दूहा ॥ ते चम्पापुर वन धणी, कोणीक नामे उदार । सामन्तादिक रथ भटा, हय गय बहु भण्डार ॥१॥ सूत्र - ६ विनय विवेक गती सती, अपछर रूप अनूप । पूर्व कही पटनारिस्युं, रातो अहनिश भूप ॥२॥ सूत्र - ७

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