Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan
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सप्टेम्बर २०१०
लघु उंचतर घर मण्डली अ, यानशाला धान्यगेह । आवेशन थानकें अ, खडीइ घोल्यां तेह ||१३|| हरख० ॥ ठाम ठाम ध्वज झलकता अ, पंचवरण छे अनूप । त्राट तोरण सज्यां अ, गन्धवटीना धूप ||१४|| हरख० || घोल करी हाथा दीया अ, रक्त चन्दन गोसीस ।
जई सेनानीनें ओ, वात कहें नमी शिस || १५ || हरख० ||
सूत्र ३०
भूपति बलवाहक थकी अ, सांभली हर्ष धरन्त ।
अट्टण शाला जई अ, मल्लयुद्धे थाकन्त ॥ १६ ॥ हरख० ॥ लक्षपाक तेल मर्दनें अ, पूरण पाणी पाय ।
कुशल शिलपी नरा अ, चउविह अंग सुहाय ||१७|| हरख० || गंध कुसुम तिरथोदकें अ, मज्जनघर करे स्नान ।
लुहे निज अंगने से, शाटिका रक्तवान ॥ १८ ॥ हरख० ॥ वस्त्र धरे विलेपणे अ, बावना चन्दन हर्ष ।
घणो वीर वांदवा से, नमन स्तवन उतकर्ष ॥१९॥ हरख० ॥
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॥ दूहा ॥
मुगट धरे शिर सोहतो, हार वली अर्धहार । कुण्डल मुख अजुआलतां, कण्ठ ठवे फुलमाल ॥१॥ कटक-तुटित-थम्भित भुजा, शोभित श्रेणीकपूत्र | मुद्रा वेढ वरांगुली, रत्नजडित कटीसूत्र ॥२॥ लम्ब चीवर उत्तरासने, जडित रयण कनकांग । वीरगरव सूचक भणीं, वीरवलय भुज चंग ॥३॥ सहस उतर अठ शालिका, लम्बित मोती माल । दण्ड वैडुर्य रजतपटो, वांम प्रमाण विशाल ॥४॥ वीषहर ऋतु सुख उजलुं, छत्र हरत अन्धकार | मुखकज सेवन हंसिका, चंचल चामर च्यार ॥५॥ कल्पतरूस्युं अलंकर्यो, मज्जनघरथी राय ।
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