Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan
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सप्टेम्बर २०१०
विचर्या आज अमुक पुरे, जे प्रभु वात कहंत । प्रवृत्तिवाहक ओक छे, वलि तेहने परितंत ॥३॥ पूरे तस आजिविका, नरपति जिनपति ध्यान । हवे वर्णव प्रभु वीरनो, सांभलज्यो धरि कान ॥४॥ सूत्र ८
ढाल - ३ नरखि नरखि तुझ बिम्बने || ओ देशी ॥ श्रमण भदन्त सयंबुद्धा, मार्ग शरण दातार । जिणन्द जगतगुरु || चन्द्र-कमल वदनोपमा, जरत - कपोत- आहार ॥१॥ जिणन्द० ॥ मंस रुधिर खीर वर्ण छे, कंचन सम तनु मान ॥ जिणन्द० ॥ लक्षण सहस अठोत्तरा, कुन्तल काजल वान ||२|| जिन्द० ॥ चन्द्र अरध सम भाल छे, युक्त सलुणा कान ॥ जिणन्द० ॥ भमुहा चाप समी कही, नेत्र कमलदल मान ||३|| जिणन्द० || सरल गरुड सम नासिका, अधर अरुण परवाल || जिणन्द० ॥ गो-पय-चन्द्र समुज्जला, अविषम दन्त विशाल ||४|| जिन्द० || दाढी मुंछ मनोहरु, मंसल देश कपोल || जिन्द० ॥ रक्तकनकमयी तालुउं, रसना रातीचोल ॥५॥ जिन्द० ॥ ग्रीवा अंगुल च्यारनी, खन्ध विपुल भुज लंब || जिणंद || पीवर कोमल अंगुली, करतल नख ततंब ||६|| जिन्द० ॥ श्रीवच्छ उज्जल मलहरू, मच्छोदर सम पेट || जिन्द० || नाभि कमल समी कही, लंक कटी हरि नेट ||७|| जिणन्द० ॥ साथल जानु ने झंघा, गज शुंढा आकार ॥ जिणन्द० ॥ नख पग तलनी ज्योतिमां, हारे रयण उदार ||८|| जिन्द० || मछर मोह ममत गयो, नाठा दोष अढार || जिन्द० ॥ श्रमणपति विश्वम्भरु, बाल्या घातिया च्यार ||९|| जिन्द० ॥ पांत्रीस वाणी गुणे भर्या, मूल अतिसय च्यार || जिन्द० ॥ ओगणीस कीधा देवना, कर्म खपे अगीयार || १०|| जिणन्द० ॥ साधु वेसे नवि कह्या, नहिं गृहस्थने वेश | जिन्द० ॥ वेश अनन्ये जिनवरा, "वेद - वदन उपदेश ॥ ११ ॥ जिन्द० ॥
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