Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 14
________________ सप्टेम्बर २०१० उग्रकुले केइ उपना, मन०, इक्षु कौरव भोग रे, सुची० । उत्तमकुलमा उपजी, मन०, श्रवणें न सुणियो सोग रे, सुची० ॥३॥ लवणिमरूपें अलंकर्या, मन०, सेनापती पुरशेठ रे, सुची० । कोटीध्वज व्यवहारिया, मन०, राजा प्रमुख विशिट्ठ रे सुची० ॥४॥ डाभ अणी जल बिन्दूओ, मन०, योवन रसनो छाक रे, सुची० । कंचन कामिनी भोगने रे, मन०, जाण्यां फल किंपाक रे, सुची० ॥५॥ साध्य धरमने साधवा रे, मन०, साधनता संयोग रे, सुची० । राज्य रीद्ध छांडी छती, मन०, लीधो मुनिवर योग रे सुची० ॥६॥ अर्धमास ओकमासना, मन०, बे-त्रिण इम अगियार रे, सुची० ।। वास-दुवास अनेकना, मन०, दीक्षित बहु अणगार रे, सुची० ॥७॥ सूत्र - १४ समरथ साप अनुग्रहे, मन०, बलिया त्रिकरण योग रे, सुची० । केता लच्छि गुणें भर्या, मन०, खेलोसहि हररोग रे, सुची० ॥८॥ जल्लोसहि विप्पोसही, मन०, सर्वोसहि समअंग रे, सुची० । कोष्टक पदअनुसारिया, मन०, बीजबुद्धि पट रंग रे, सुची० ॥९॥ संभिन्नश्रोत खीराश्रवा, मन०, मधुराश्रव घृत छेक रे, सुची० । अखिण महाणसी तप थकी, मन०, सम्भव लच्छि अनेक रे, सुची० ॥१०॥ विपुलमती ते शिवगमी, मन०, ऋजुमति केइ मुणिन्द रे, सुची० ।। वैक्रिय अड सिद्धी धणी, मन०, करता कर्म निकन्द रे, सुची० ॥११॥ विद्या-झंघा चारणा, मन०, पत्र कुसुम जल रंग रे, सुची० । शुभ गुरू वचनें जाणज्यों, मन०, चारणना बहुभंग रे, सुची० ॥१२॥ ॥ दूहा ॥ जाति कुल बल रूपस्युं, पद सम्पन्न सहीत । लाघव लज्जा विनय गुण, दंसण नाण चरीत ॥१॥ क्रोधादिक चउ झीतता, परिसह ने उवसग्ग । जित निंद्रा-भय-आश्रवा, चरण-करण गुण लग्ग ॥२॥

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