Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान ५२
ढाल-५ चन्द्रप्रभु जिनचन्द्रमा, मने देखण वें ॥ ओ देशी ॥ भव दावानलमां भमी, चित चेत्या रे, ठोर ठोर अपमान, चतुर चित चेत्या रे । मोहरायने मारवा ॥ चित०॥ करता मन्त्र विधान ॥ चतुर० ॥१॥ संयम साधे साधुजी ॥ चित० ॥ तप तपता धरी हाम ॥ चतुर० ॥ मणी मोती कनकना भूषणा ॥ चित० ॥ सम थापन तप नाम ॥ चतुर० ॥२॥ उत्तरता दोय पासथी ॥ चित० ॥ ओक दोय त्रिण्य अंक ॥ चतुर० ॥ नव कोठा वचिं शून्य छे ॥ चित्त० ॥ शेष घरे त्रिण्य टंक ॥ चतुर० ॥३॥ ओकादिक सोल सेरमां ॥ चित्त० ॥ डुगडुगीनो हवे ठाठ ॥ चतुर० ॥ पांत्रीस कोठा झुमखं ॥ चित्त० ॥ षट रेखायत आठ ॥ चतुर० ॥४॥ चोत्रीस त्रिगडा थापिई ॥ चित्त० ॥ शून्य वचिं करी अक ॥ चतुर० ॥ अथवा दु-ति-चउ-पण-षटें ॥ चित्र० ॥ पण-चउ-तिग-दु विवेक॥चतुर० ॥५॥ वा अक-दो-चउ-षट-अडें ॥ चित्त० ॥ षट-चउ-दो-ओक सार ॥ चतुर० ॥ गुरुगम थापनथी घणा ॥ चित्त० ॥ डुगडुगीना अधिकार ॥ चतुर० ॥६॥ पारणां अठ्यासी तप सवि ॥ चित्त० ॥ मास सत्तर दिन बार ॥ चतुर० ॥ च्यार वार कनकावली ॥ चित्त० ॥ तो होइं चोसरो हार ॥ चतुर० ॥७॥ कोठा नव नव पण तीसें ॥ चित्त० ॥ त्रीक ठामे दोय दोय ॥ चतुर० ॥ इणी रीते रतनावली ॥ चित्त० ॥ ओके ओकावली होय ॥ चतुर० ॥८॥ पडिमा भद्र महाभद्र ॥ चित्त० ॥ सर्वतोभद्र ते जोय ॥ चतुर० ॥ लघु गुरू आदि अनुक्रमे ॥ चित्त० ॥ सहनिक्किलीया दोय ॥ चतुर० ॥९॥ टीका थकी विधि जाणज्यो । चित्त० ॥ तप आम्बिल वर्धमान ॥ चतुर० ॥ बारें पडिमा आदरे ॥ चित्त० ॥ साधु सदा सावधान ॥ चतुर० ॥१०॥ धुर पडिमा ओक मासनी ॥ चित्त० ॥ इंम सातमी सात मास ॥ चतुर० ॥ सात सात अहोरातिनी ॥ चित्त० ॥ पडिमा त्रण्य निवास ॥ चतुर० ॥११॥ अहोराति अक रातिनी ॥ चित्त० ॥ अन्तिम दोय अ बार ॥ चतुर० ॥ सप्तम सप्तमिया कही ॥ चित्त० ॥ अष्टम अष्टमि सार ॥ चतुर० ॥१२॥ नवम नवमिया वासरा ॥ चित्त० ॥ दसम दसमिया ठाम ॥ चतुर० ॥

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