Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ सप्टेम्बर २०१० अनुभूति सहजताओ थई जाय छे. 'जल पंकज दल बोधतो, उग्यो किरण हजार । प्रभु मुख साम्हइया तणी, शोभा देखण सार ॥ (ढा ४/८) जे पोताना प्रभावथी आकाशमां रहीने पण सरोवरमा रहेला कमळने खीलवी दे छे अने जे हजार किरणोनी कान्तिथी झळहळी रह्यो छे, ओ सूर्य पण प्रभु मुखनो प्रभाव अने कान्ति जोवा माटे जाणे उग्यो छे. आम उत्कृष्ट उत्प्रेक्षावर्णन द्वारा 'प्रभुमुख सूर्य करतां पण वधु प्रभावशाळी अने वधु कान्तिमान छे,' आवो व्यतिरेक अलङ्कार सूचव्यो छे. ___ 'तप तपता इम साधुजी, सिद्धान्त पेटी हाथ.' (ढा ५/१५) अहिं अq ध्वनित थतुं लागे छे के - (१) पेटीमां रत्नो के झवेरात भरवाना होय. अहिं तो सिद्धान्त भरेली पेटी छे. माटे सिद्धान्त रत्नोनी जेम अतिकीमती छे. (२) 'तपस्वी मुनि शास्त्रज्ञानथी युक्त छे.' आ कथन द्वारा अहीं तपमार्गमां पण ज्ञाननी ज प्रधानता दर्शावी छे. 'अरीसा सम परकाश' (ढा. ६/दूहो-२) अहिं मुनिने दर्पण समान कह्या छे. दर्पणनो महत्त्वनो गुण निर्मलता छे. तो मुनिमां पण निर्मलता भरेली छे. दर्पण सामी वस्तुनुं यथास्थित प्रतिबिम्ब आपे छे, तो मुनि पण यथास्थित अर्थना शुद्ध प्ररूपक छे. ढा. -७/२ मां प्रभुना दर्शनथी आनन्द उछळे छे अने तत्त्ववचन- श्रवण करे छे. तत्त्वश्रवण श्रद्धा उत्पन्न करे छे. आम, अहीं सम्यग् दर्शन- अने कडी९, १०मां सम्यग् ज्ञान अने सम्यग् चारित्रनुं प्ररूपण थयुं छे. 'वसना-भूषणस्युं जडीया' (ढा. ७/११) खरेखर वस्त्र-आभूषणमां तो रत्नोने जडवाना होय. अहीं नगर लोकने वस्त्राभूषणमां जड्या छे. अथी अq सूचित थाय छे के - त्यांना मानवो सामान्य नहोता पण नररत्नो हता. ___ढा. ८/१ थी ६मां हस्तिरत्नना शणगारना वर्णनने स्वभावोक्ति (जाति) अलङ्कारथी दीपाव्युं छे. 'अन्तेउर कारणे ओ वस्त्रावृत अपहार' (ढा. ८/८) अन्तेपूर माटे वस्त्रावृत यान सज्या छे. आ परथी ओ समयनी स्त्रीओनी मर्यादाशीलता प्रगट थाय छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28