Book Title: Konik Raj Samhaiyu
Author(s): Tirthtraiyi
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ सप्टेम्बर २०१० ७१ (२) थयुं, अने आगमनना वधामणां सांभळ्या पछी शक्रस्तवआदि द्वारा प्रभुगुणोनुं कीर्तन (३) थयुं छे. 'स्वामी पधारे तो सेवके विनय अवश्य करवो.' आवो दास्यभाव (७) साम्हइयामां प्रगट थाय छे. प्रभुना दर्शन अने प्रभुवाणीना श्रवण पछी 'त्वं मे माता पिता नेता, देवो धर्मो गुरुः परः । प्राणाः स्वर्गोऽपवर्गश्च, सत्त्वं तत्त्वं गतिर्मतिः२ ॥' आवी सख्यभावनी (८) प्रीति बंधाय छे. अन्ते आत्मनिरूपण (९) रूप अभेदभाव सधाय छे. 'कोणिकराजाओ पण तीर्थंकर नामकर्म बांध्युं छे.' ए वात आत्मनिरूपण भक्तिनी साक्षी छे. आम, साम्हइयामां नवधा भक्ति समायेली होवाथी साम्हइयुं श्रेष्ठ भक्ति छे. __ आ कृतिना रचयिता कवि श्री वीरविजयजी सुन्दर-सुगेय रचनाओने कारणे जैन काव्यसाहित्यमां प्रतिभासम्पन्न कवि तरीके प्रसिद्ध छे. तेमनी रचनाओ वेलि, स्तवन, सज्झाय, स्तुति, चैत्यवन्दन, दुहा, हरियाळी, गहुंली, रास, विवाहलो, पूजा, लावणी, ढाळीया अने आरति जेवा १४ काव्य प्रकारोथी समृद्ध छे. अमनी रचनाओमांथी स्नात्रपूजा, पंचकल्याणक पूजा, महावीर जिन पंचकल्याणक स्तवन आदि अत्यन्त लोकप्रिय छे. पूज्य वीरविजयजी म.नुं संसारी नाम केशवराम हतुं राजनगर = अमदावादना रहेवासी औदीच्य ब्राह्मण जज्ञेश्वर अने वीजकोर बाईना घरे संवत १८२९नी आसो सुद-१० ना दिवसे तेमनो जन्म थयो. तेमणे पाठशाळा पद्धतिथी संस्कृतभाषानुं ज्ञान प्राप्त कर्यु. रळीयातन साथे तेमना लग्न १८ वर्षनी ऊमर पहेला थया हता. लग्न पछी तेमना पिता अवसान पाम्या. केटलाक समय बाद श्री शुभविजयजी म.सा.नो समागम थयो. शुभवि.म.ना वैराग्यमय उपदेशथी संसार प्रत्ये वैराग्यभाव प्रगट्यो अने संवत १८४८ ना कारतक वदमां तेमनी पासे दीक्षा लीधी. दीक्षा पछी शुद्ध चारित्रसाधना साथे अजोड ज्ञानोपासना करी. गुरु पासे आगम ग्रन्थोनो उंडाणथी अभ्यास कर्यो, छन्दशास्त्र अने पंचकाव्यादिनो पण अभ्यास कर्यो. सं. १८६७ मां गुरुदेवे तेमने पंन्यास पदथी विभूषित कर्या, संवत १८५७ थी १९०५ सुधी अविरतपणे साहित्यरचना करीने पू. वीरविजयजी म. ए संवत १९०८मां मांदगी दरम्यान ७९ वर्षनो जीवनकाल समाप्त कर्यो.. २. श्रीसिद्धसेनदिवाकरसूरिविरचितः श्रीवर्धमानशक्रस्तवः श्लो० २

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