Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 10
________________ भूमिका अपनाई है कि हम सारी वातों को छोड़कर उनके 'अर्थगौरव' पर ही निछावर हो बैठते हैं। अल्प शब्दों में विपुल अर्थ का सन्निवेश कर देना ही अर्थगौरव है। भारवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर दिया है । उन्होंने अपने काव्य में बड़ी कुशलता से गम्भीर अर्थ वाले पदों का प्रयोग किया है । उनका प्रत्येक पद अर्थगाम्भीर्य से समन्वित है और प्रत्येक पद साभिप्राय प्रयुक्त है। उनका एकएक पद दीर्घ वाक्य के अर्थ को प्रगट करने वाला है। यही कारण है कि कृष्ण कवि ने भारवि की रचना को सन्मार्गदीपिका के सदृश कहा है प्रदेशवृत्त्यापि महान्तमर्थं प्रदर्शयन्ती रसमादधाना । सा भारवेः सत्पथदीपिकेव रम्या कृतिः कैरिव नोपजीव्या ॥ यद्यपि भारवि कलावादी हैं तथापि उनकी कला माघ और श्रीहर्ष के समान अत्यधिक अलंकृत नहीं है । भारवि शब्दों के आडम्बर के फेर में सर्वदा नहीं पड़ते । उनका विशेष ध्यान अर्थ-गाम्भीर्य पर ही रहा है। प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने भारवि की उक्तियों को नारिकेल-फल के सदृश कहा है नारिकेलफलसम्मितं वचो भारवेः सपदि तद्विभज्यते । स्वादयन्तु रसगर्भनिर्भरं सारमस्य रसिका यथेप्सितम् ।। भारवि के शब्द नारियल के समान है। जिस प्रकार नारियल का छिलका कड़ा होता है परन्तु तोड़ने पर भीतर मीठा फल मिलता है, उसी प्रकार भारवि के शब्द अल्म तथा कठिन हैं परन्तु प्रयत्न से समझने पर अर्थ गम्भीर और सुन्दर होता है । द्वितीय सर्ग में युधिष्ठिर जिन शब्दों में भीम के भाषण की प्रशंसा फरते हैं, वे ही भारवि के कला-सम्बन्धी सिद्धान्त के निदर्शन हैं स्फुटता न पदैरपाकृता न च न स्वीकृतमथंगौरवम् । रचिता पृथगर्थता गिरां न च सामर्थ्यमपोहितं क्वचित् ।। अर्थात् 'पद-प्रयोग में स्पष्टता हो, अर्थ-गौरव का ध्यान रहे, पदों में भिन्नार्थता हो तथा पद परस्पर साकांक्ष हों।' ये सभी गुण भारवि के महाकाव्य

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