Book Title: Khartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 21
________________ ६. जैनसंघ का व्यापक विस्तार जैनीकरण खरतरगच्छ की अभूतपूर्व देन है। खरतरगच्छ ने जैन-संख्या में जितना विस्तार किया, उतना आज तक किसी अन्य गच्छ या शाखा द्वारा नहीं हुआ। खरतरगच्छ में हुए आचार्यों में से एक-एक आचार्य के द्वारा हजारों-हजार नये जैन बनाये गये। आचार्य जिनवल्लभसूरि ने एक लाख नये जैन बनाये। जैनीकरण का विश्व-कीर्तिमान स्थापित किया आचार्य जिनदत्तसूरि ने। आचार्य का जैन-संघ को यह अनुपम और अद्वितीय अनुदान है। प्राप्त उल्लेखों के अनुसार जिनदत्तसूरि के हस्ते एक लाख तीस हजार से अधिक नये जैन बने। इसी प्रकार आचार्य जिनकुशलसूरि ने अपने जीवन में पचास हजार नये जैन बनाये। जैन धर्म के व्यापक विस्तार की दृष्टि से खरतरगच्छ ने बहुत बड़ा कार्य किया, लाखों अजैनों को जैनधर्म में प्रवृत्त किया। क्षत्रिय जाति का जैन धर्म के साथ प्रारम्भ से ही बड़ा निकटतापूर्ण सम्बन्ध रहा, किन्तु आगे चलकर परिस्थितिवश वैसा नहीं रह सका। शताब्दियों बाद आचार्य श्री जिनदत्तसूरि एवं उनकी परम्परा में हुए आचार्यों ने अपने त्याग-तपोमय आदर्शों और उपदेशों से लाखों क्षत्रियों को प्रभावित किया, उन्होंने जैनधर्म स्वीकार किया। ओसवाल जाति, जो आज लाखों की संख्या में है, उसी क्षत्रिय-परम्परा की आनुवंशिकता लिये है। ७. गोत्रों की स्थापना खरतरगच्छाचार्यों में आचार्य जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनचन्द्रसूरि आदि आचार्यों ने शताधिक नूतन गोत्र स्थापित किये। श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा बन्धुओं के अनुसार आचार्य श्री वर्धमानसूरि से लेकर अकबर-प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरि तक के आचार्यों ने लाखों अजैनों को जैनधर्म का प्रतिबोध दिया। ओसवाल वंश के अनेक गोत्र इन्हीं महान् आचार्यों के द्वारा स्थापित हैं। महत्तियाण जाति को प्रसिद्धि मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि से विशेष रूप में हुई। इस जाति के भी ८४ गोत्र बतलाये जाते हैं। श्रीमाल जाति के १३५ गोत्रों में ७९ गोत्र खरतरगच्छ के प्रतिबोधित बतलाये गये हैं। पोरवाड़ जाति के पंचायणेचा गोत्र वाले भी खरतरगच्छानुयायी थे। खरतरगच्छीय गोत्रों में ओसवाल-वंश के ८४, श्रीमाल के ७९, पोरवाड़ और महत्तियाण के १६६ गोत्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। ___ खरतरगच्छ ने केवल जैनीकरण ही नहीं किया, अपितु जैन समाज के अनुरूप नूतन जैनों को ढाला भी। उन्हें जैनधर्म के अनुरूप सामाजिक व्यवस्थाएँ दी गई, धार्मिक एवं सांसारिक व्यावहारिकताएँ उनसे जोड़ी गईं। जैन विधिमूलक व्यवहार-धर्म का पालन करने के लिए उन्हें अलग-अलग गोत्र दिये गये। एक-एक गोत्र से सैकड़ों-हजारों लोगों का सम्बन्ध जोड़ा गया। खरतरगच्छ द्वारा अब तक दो सौ से अधिक गोत्र स्थापित हुए हैं। भूमिका Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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