Book Title: Kasturi Prakar
Author(s): Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyuday Prakashan

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Page 112
________________ गुह्यं दुर्जनचेतसीव सलिलं मूर्नीव धात्रीभृतो, युद्धोयामिव कातरः कलिमल: स्वांते सुसाधोरिव । दौर्गत्यं धरणीरुहीव मरुतां भेजे न चेतोम्बुजे, स्थैर्य यस्य मृगीदृशां विलसितं धन्याय तस्मै नमः ।।१४८।। इन्द्रवज्रावृत्तम् भूभंगभोगैर्लसदंतरालैनैणीदृशां देहसदर्पसर्पः । सद्ध्यानदीप: समियाय शांतिं, तस्मै नमः संयमिकुजराय ।।१४९।। 'पाताले हिमरश्मिरश्मि सवयो, भोगीन्द्रभोगच्छलात्, तत्कीर्ति रमतेऽनयोजनि मनाग, भीरुर्जराभीरुतः । ..........||१५०।।

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