Book Title: Kasturi Prakar
Author(s): Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyuday Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ दौर्जन्यसज्जे मनुजे वसन्तो, गुणा भवेयुर्नहि गौरवाय। गुणाधिरोप: परपीडनाय, कदापि चापेष्विव किं न दृष्टः ?।।१५७।। मन्दाक्रान्तावृत्तम् वेषव्यतिर्विशदवसनादेव साध्यातिमेध्या, विद्या हृद्या स्वमतिविभवादेवलभ्यातिसभ्या। वित्तावाप्तिर्भवति च बहोरूद्यमादेव दिव्या, वस्त्रप्रज्ञोद्यमपरिचयैः प्राप्यते नो गुणौघः ।।१५८।। इन्द्रवज्रावृत्तम् पाषाणखंडान्यपि मौक्तिकानि, यत्संक्रमाल्लोलविलोचनानाम्, वक्षःस्थलेऽलङ्करणीभवन्ति, तेषां गुणानां महिमा महीयान् ।।१५९।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140