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. कीर्ति-स्मृति .
Dt. 19-07-2018-5
यह सहज है। अन्य स्वजन जो आघात अनुभव करें, उससे माता का आघात अलग ही होता है। मातृहृदय ही वह जाने । परंतु तुमने अनेक बार मुझसे कहा था कि माताजी में समझदारी आदि अमुक प्रकार की शक्तियाँ हैं । अतः वे शक्तियाँ ही अभी काम दे सकती हैं। आखिर तो अपनी समझ के बिना, दूसरे का या बाहर का आश्वासन केवल क्षणिक आश्वासन सिद्ध होता है। आप सब कुटुम्बीजन विशेष स्वस्थ रहने का प्रयत्न करें ऐसी अपेक्षा स्वाभाविक ही रहती है।
-सुखलाल" - सरदार पृथ्वीसिंह आझाद (स्वामीराव) तो, जो कीर्ति के क्रान्तिकारी जीवन के प्रथम निर्माता रहे थे, उसके असामयिक निधन से बड़े दुःखी हो गये । उन्होंने लिखा :
चंडीगढ़, पंजाब, १८-११-१९५९ "मेरे प्यारे भाई प्रतापराय, जयहिन्द । आपका अशुभ समाचार देनेवाला पत्र मिला।
मुझे कितना दुःख हुआ है, आप इस का अन्दाज़ा नहीं लगा सकते । मेरा लाडला कीर्तिकुमार मेरे साथ साथ रहना चाहता था, मैं उसे न रख सका । बड़ा होनहार कुमार था वह । मौत तो सब को अपने पंजे में ले लेती है। अकसर युवा काल में भूलों के परिणाम से मौत आती है । मैं फिर आपको दूसरा पत्र लिखूगा । M.L.A. Flats No. 26
आपका शुभचिन्तक, Sector-3, Chandigarh (Punjab)
पृथ्वीसिंह जिनके समीप अपनी उत्कट अदम्य इच्छा के बावजूद, परिस्थितिवश, कीर्तिकुमार पहुँच नहीं सका था, ऐसे करुणावतार बाबा विनोबा को लिखे गये विस्तृत पत्र के प्रत्युत्तर में बाबाने अपनी लाक्षणिक, संक्षिप्त, सूत्र-शैली में लिखा :
अज्ञात संचार पंजाब, ३०-१२-१९५९ "प्रतापराय,
पत्र मिला । छोटे भाी की करुण कहानी पढ़ी । उसमें से आध्यात्मिक सवाल तुम्हें सूझे, उसकी चर्चा पत्र में नहीं करना चाहता । कभी मिलोगे तब चर्चा हो सकेगी । जानेवाला गया, पीछे रहनेवालों को अपना कर्तव्य करना होता है। .
वीनोबा" इन सभी महत्पुरुषों के उपरान्त स्वजनों, साथियों, मित्रों के अश्रुप्रवाहभरे प्रतिभाव पत्र तो लगातार आते रहे।
बड़े और छोटे-सभी का इतना प्रेम पानेवाले इस युवा करुणात्मा क्रान्तिकार के लोहचुंबकमय जीवन का रहस्य क्या था? उसकी निराली कही गई-मानी गई दास्तान क्या थी?
इस प्रारंभिक दर्शन के पश्चात् अगले प्रकरण में देखेंगे उसके इस चुंबकीय, प्रेरक जीवन का, संक्षेप में भी सही, आद्यान्त दर्शन ।।