Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 17
________________ 07-2018. . कीर्ति स्मति | । प्रकरण-३ Chapter-3 | । क्रान्तिकार्यार्थ कलकत्ता की ओर..... ) लींबड़ी का कार्य छुड़वाने के पीछे हमारी पू.माँ की भी, कुछ बिना विवेक और कुछ बड़ों के दबाव के कारण, भावना बनी थी। हम दोनों अनुजों ने मातृभक्तिवश वह विवशता से स्वीकार की थी। फिर भी एक स्पष्टतापूर्ण शर्त रखी थी कि हम दोनों को अपना अपना विद्याध्ययन आगे बढ़ाने दिया जाय-कीर्ति को मेट्रिक्युलेशन का और मुझ को ग्रेज्युएशन का । इसीके दौरान मुझे भारतभर के आध्यात्मिक केन्द्रों-आश्रमों, संतों आदि के सत्संग-दर्शन-प्रवास करने थे, सो संपन्न हुए और अंत में आचार्य विनोबाजी सह उड़ीसा से लेकर अनेक-प्रदेशों की पदयात्राओं में चलते रहे। कीर्ति का, तब प्रारम्भ में ही कहे अनुसार जुलीकांचन में बालकोबाजी के पास रहना हुआ-- अनेक जीवन-निर्माण के लाभों को प्राप्त करते हुए वहाँ शरीर परिश्रम, ग्रामसफाई, निसर्गोपचार शिक्षा, राष्ट्रीय धाराओं एवं क्रान्तिकार्यों का चिंतन, जे.पी. की संपूर्ण क्रान्ति एवं विनोबाजी की रामराज्य-ग्रामराज्य-सर्वोदय क्रान्ति सभी का अध्ययन हुआ । उसे स्वयं विनोबाजी के पास जाकर प्रत्यक्ष चर्चा करने की छटपटाहट जगी । मैंने बाबा की पदयात्राओं में रहकर दूर से उसकी आयोजना एवं पूर्वव्यवस्था भी की, परन्तु बड़े ही बदनसीब से, इस बीच जीजा एवं उनके पाशवी वृत्ति के शोषक पूंजीपति बंधु के भ्रष्टाचारी कारनामों में कीर्ति जैसे होनहार क्रान्तिकार को मद्रास बुलाकर फंसाने का, उन दोनों द्वारा षड़यंत्र रचा गया, जब कि मैं सुदूर बाबा की पदयात्राओं में था । यात्रा में देरी से समाचार मिलने पर मैंने जीजाजी को तार और पत्र भेजकर उनकी इस चाल का विरोध किया । दोनों अग्रजों को भी लिखा । जीजा ने पहले भी उनकी इस चाल का संकेत देने पर मैंने स्पष्ट विरोध दर्शाया था। __परन्तु प्रथम तो कुछ समय तक उदानी बंधुओं ने कीर्ति जैसे क्रान्ति के लिये मुक्त गगन में उड़ने पर फरफराने के लिए समर्थ पंछी को अपनी जाल में फंसाने की कुचेष्टा की, परन्तु वह कहाँ उसमें फंसा रहनेवाला था? इस प्राथमिक कुचेष्टा में उन्होंने कीर्ति के "हितैषी" होने का नाटक कर के न केवल हमारी बहन और मद्रास में उनके पास नौकरी कर रहे सरलात्मा अग्रज चंदुभाई को, किन्तु हमारी भोली माँ को भी भरमाये रखा ! पर कितनी कुटिल, कितनी भयंकर और कितनी भ्रष्टाचारपूर्ण थी इन भ्रष्ट सम्बन्धीजनों (?) की षड़यंत्र भरी चाल ! कीर्ति जैसे शरीर से सशक्त और बुद्धि से तज्ज्ञ युवक के हाथों पत.. वे क्या करवाना चाहते थे ? उसे ६०/- साठ रुपये प्रतिमाह का वैतनिक 'सुपरवाइजर' बनाकर

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