Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 28
________________ Dt. 19-07-2018- - 22 फिर बिछड़ने का दुःख मुझे भी रह गया, कीर्ति को भी ! आखिर जीवन की घटनाएँ भी कैसे कैसे निमित्तों कारणों से अप्रत्याशित, अकल्पित मोड़ लेती रहती हैं ! कीर्ति-स्मृति इधर कीर्ति ने कलकत्ता में अपनी प्रवृत्ति में एक विशेष नया उपक्रम जोड़ा था अपने चल रहे फैक्ट्री - कार्य के साथ साथ । यद्यपि उसने अपने पूर्व-उल्लिखित २१ दिन के उपवास और जपसाधन आधे पथ पर अधूरे छोड़ दिये थे, फिर भी उसने प्रातः अमृतवेला में जल्दी जागकर अपने रोज़ाना प्रार्थना, योग- व्यायामादि नित्यक्रम नहीं छोड़े थे। सरदार पृथ्वीसिंहजी बालकोबाजी, आदि के एवं हमारे परिवार के पत्रसम्पर्क में भी वह रहता था- विशेष कर हमारी माँ के, कि जिसके प्रति वह असामान्यरूप से भक्तिपूर्ण एवं आशांकित रहता था। मातृभक्ति की अनुपालना में वह अपनी इच्छाओं तक को छोड़ देता था। इसी के साथ साथ उसका किताबी अध्ययन एवं अन्य विद्वानों के संग चर्चा-चिंतन भी चलता रहता था। अपने अध्ययन और दीर्घ प्रत्यक्ष अवलोकन (observation) के पश्चात् उसने प्रारम्भिक साम्यवादी (communism) और हिंसक क्रान्ति के विचारों को छोड़ दिया था, परन्तु देश की दयनीय दशा देखकर क्रान्ति कार्य को प्रायोगिक बनाने के लिये वह तड़प रहा था । उसके प्रत्यक्ष निरीक्षणों और स्वानुभवों ने कलकत्ता की क्रान्ति नगरी में स्थानिक साम्यवादियों को "दांभिक" एवं भारत के कांग्रेसियों और समीपस्थ घूसखोर बाबुओं को "भ्रष्ट" मानने स्पष्टरूप से बाध्य किया था। दूसरी ओर अपनी आँखों के सामने ही पिस रहे शोषित पीडित हो रहे विशाल दुःखी जनसमाज को देखकर वह द्रवित हो रहा था । वह समीप ही देख रहा था भूखे या एकाध बार थोड़ा-सा 'सत्तु' खाकर जी रहे रीक्षा चालकों, मिलमज़दूरों, फूटपाथ पर सोनेवालों और दिन-रात खटनेवाले निकट २४ परगना, वीरभूम, बर्दवान, बारीसाल आदि जिलों के किसानों को इन दोनों विरोधाभासों ने उसके दिल को गहरे दर्द से भर दिया था और वह बार बार पुकार उठता था , — - "कब तक चलेगा, चलता रहेगा यह सब ? कब तक ?" इस वेदना के साथ वह कब से मिलने जाना चाह रहा था पूज्य बाबा विनोबाजी एवं जयप्रकाशजी से ! परंतु कलकत्ता की अपनी प्रवर्तमान प्रवृत्तियों ने उसे इस हेतु समय निकालने नहीं दिया। फिर भी इन सभी व्यथाओं, तड़पनों, छटपटाहटों का परिणाम था उसके करुणाशील हृदय और चिंतनशील मस्तक में से ऊपजा हुआ उसका नूतन आविष्कार, अभिनव विचार बाद " संपन्नतावाद RICHISM" नूतन प्रकार का समाजवाद / साम्यवाद COMMUNISM नहीं, समृद्धि-संपन्नतावाद । उसने निकट से, खुद ही पीड़ा झेलकर देखा और महसूस किया था कि "दरिद्रता ही सब दुःखों, दीनताओं और दूषणों की जड़ है ।" कुछ इसी समय के दौरान कीर्ति के साथी सहयोगी रेडी को विवश होकर अपने वतन आंध्र जाना पड़ा था अपनी खेती और परिवार की देखभाल हेतु कीर्ति के साथ कलकत्ता में जुड़ने से पूर्व वह बेकार था । वास्तव में वह भी मद्रास में शोषक उदानी से बड़ा ही शोषित-पीडित हुआ था, 1 (22). ww

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