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Dt. 19-07-2018-25
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.कीर्ति-समति ।
| प्रकरण-५ Chapter-5] सम्पदा-स्रोत विहीन, कठोरतम, जोखिमभरा और दुर्लभ
क्रान्तिमार्ग था - “संपन्नतावाद RICHISM" : जे.पी. के पचिह्नों पर दरिद्रोद्धार एवं रोमांचक परिवर्तन का पथ - न केवल
अभावग्रस्तों का, परन्तु पथभ्रात असामाजिक तत्त्वों तक का भी ! जिस पड़ाव की ओर अब कीर्ति आगे बढ़नेवाला था वह आत्यंतिक कठोरतम, शायद भयंकरभयावना था। क्रान्ति के जोश और जुस्से को उसने बचपन से ही संजोया और भरा था अपने हृदय में - जिसमें उसने भारत की आजादी के पूर्वोक्त शहीदों-क्रान्तिकारों को अपने आदर्श के रूप में . बिठाया था। उसके बाद नेताजी सुभाषचन्द्र बोझ आदि और कार्लमार्कस, लॅनिन, स्टालिन,टोलस्टॉय, माओ, इत्यादि ने भी उसके दिल और दिमाग का कब्ज़ा लिया था । इन सभी के एवं अन्य विषयों के पठन-मनन, तथा सरदार पृथ्वीसिंहजी, बालकोबाजी, केदारनाथजी आदि आप्तगुरुजनों के प्रत्यक्ष समागमों ने उसके चिंतन एवं बर्ताव के क्षितिजों को विस्तृत किया था । बेशक अभी तक विनोबाजी एवं जयप्रकाशजी के साथ उसकी चिंतन-बैठक नहीं हो पाई थी। फिर भी वह अपने अध्ययन और अवलोकन के आधार पर उनसे बड़ा ही प्रभावित हुआ था। तभी तो उसने, छोटे पैमाने पर भी, जे.पी. की फैक्ट्री दान की योजना प्रयोग में उतार दी थी।
अब वह जे.पी. के पचिह्नों पर गांधीमार्गी दलितोद्धार-युक्त क्रान्तिकारी परिवर्तन-पथ का प्रयोग प्रारंभ करने जा रहा था । परिवर्तन-न केवल दीन-दरिद्र अभावग्रस्तों का, किन्तु पथभ्रान्त, असामाजिक, गुंडे-तत्त्वों का भी। जे.पी. ने चम्बल के बेहड़ों में यह प्रयोग किया था और रविशंकर महाराज ने गुजरात में । परंतु यहाँ यह छोटा-सा क्रान्तिकार कलकत्ता के महानगर में वह करने जा रहा था। उसके पास सम्पदा के और मानव-शक्ति के स्रोत थोड़े ही, नहींवत् थे, परंतु भीतर सतत जल रही क्रान्ति की आग के कारण उसके हौसले बुलन्द थे ।
बचपन से ही उसने मेरे साथ सौराष्ट्र के सिध्धांतवादी डाकु-लुटेरों ('बाहरवटिया') की रोमांचकारी सच्ची कहानियाँ न केवल "सौराष्ट्र की रसधार","सोरठी बहारवटिया" आदि किताबों से पढ़ी थीं, परंतु गौर से सुनीं भी थीं- और वे भी इनके लेखक राष्ट्रीय शायर श्री झवेरचंद मेघाणी के स्वयं के श्रीमुख से । पूर्वोल्लेखानुसार श्री झवेरचंद मेघाणी हमारे मौसेरे भाई होने के साथ साथ हमारे पिताजी के विद्यार्थी भी थे कि जिनसे उन्होंने कलापी जैसे कवियों की कृतियों का अध्ययन किया था । पूर्वकथन अनुसार श्री मेघाणी हमारे घर पर बहुधा ठहरा भी करते, अपने गीत-कविता " गाया भी करते और अपनी शौर्य-कथाएँ सुनाया भी करते । मूलतः उनके राष्ट्रीय गीत लोकगीत मेरे कंठ में बैठ गये और उनकी सोरठी लुटेरों की पराक्रम कथाएँ कीर्ति के क्रान्ति-प्यासे बाल
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