Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 39
________________ कीर्ति-स्मृति गुनाहित गुप्त-प्रवृत्तियाँ छोड़कर भाग छूटते थे । भाग जाते हुए ये अपराधी लोग - बहुधा स्मगलर्स, गैरकानूनी व्यापारी एवं विशेषकर गुप्त बम उत्पादक आदि यह धारणा रखते थे कि कीर्ति की टीम के पीछे पुलिस भी साथ आ रही है। इस आशंका और भय के कारण वे अनेक बार जल्दी जल्दी में अपना भयातंकित गुनाहित सामान या तो साथ ले छूटते थे या किसी के स्थान पर छोड़ आते थे, या फैंक भी देते थे । जब वे ऐसा गैरकानूनी सामान दूसरों के स्थान पर छोड़ आते थे, तब ऐसे स्थान मालिकों के लिये स्वाभाविक ही भयानक और जोखिमभरा बन जाता था । Dt. 19-07-2018 34 एक बार सचमुच ही ऐसी घटना घटी अभी तो रात बीती नहीं थी और अंधेरा छाया हुआ था। लगभग सभी लोग सोये हुए थे और बाज़ार की दुकानें, गोदाम, ऑफिसें सब बंद थे। एक अनजाना गुप्त, भेदी राहदारी अपने बारुदी सामान से भरे हुए पार्सल को सर पर उठाकर आता है महानगर के मध्य के अमरतला स्ट्रीट में, चढ़ जाता है, जहाँ नीचे दुकानें थीं ऐसी एक निवासी कोठी की पहली मंज़िल पर । उस माले के सभी निवासी अब तो सोये हुए थे, लेकिन एक चाय के व्यापारी मेसर्स मनोरदास शाह एन्ड कंपनी का सुबह जल्दी उठनेवाला कर्मचारी मि. कपिल जागा हुआ था । माथे पर गठ्ठा धरा हुआ वह अनजान भेदिया राहगिर उसे अर्ज गुज़ारता है कि पड़ौसी मेसर्स रतिलाल कंपनी वालों को यह पार्सल सौंपना है और वह बंद होने से थोड़ी ही देर उसे अपने आफिस में रखने दें, जो कि वह खुद कुछ समय बाद वापिस आकर पहुँचा देगा । यह कहकर सामनेवाला उसकी स्वीकृति दे या न दे इस बात की परवाह किये बिना वहाँ रखकर चंपत हो गया ! वास्तव में मनोरदास शाह एण्ड कंपनी का यह ऑफिस संयोग से हमारे मित्र श्री मनुभाई शाह का ही था और उनका पुत्र राकेश उस दिन सुबह किसी खास काम से वहाँ जल्दी ही पहुँचा था। उसके प्रवेश करते ही कपिल ने उसे वह अनजाना पार्सल बतलाया । बीत रही रात और आ रहे भोर के समय ही योगानुयोग से कीर्ति भी वहां आ पहुंचा जो कि बारंबार वहाँ अपने डाकपत्रादि प्राप्त करने और मनुभाई से मिलने आ जाया करता था। हम भी दूर से अपने पत्र आदि इसी पते पर भेजा करते थे। आज तो वह कुछ जल्दी ही मुँह अंधेरे आया था । आते ही उसने उस भेदी पार्सल को देखा। उसकी पैनी सूझ और चौकन्नी नज़र ने तुरन्त ही उसमें भरे हुए रहस्यमय बारुदी सामान को भाँप लिया। उसे छोड़ जानेवाला भेदिया राहगिर, जो कि वापिस लौटे ऐसी सामान्य संभावना नहीं होती थी फिर भी इन सब के सद्भाग्य से, वहाँ पार्सल उठा ले जाने आ पहुंचा। उस जिद्दी और खूंखार भेदिये से कीर्ति ने जबरदस्ती वह पार्सल खुलवाया और अपने अंदाज़वाला भयानक बारुदी पदार्थ ही उसमें पाया । आजुबाजु के कुछ लोग भी जमा हो गये थे। उसे भेदी आदमी को भाग छूटने का मौका दिये बिना कीर्ति ने तुरन्त ही अमरतल्ला स्ट्रीट की निकट की पुलिस को बुलाकर इस अपराधी और उसके भयातंकित सामान को सौंप दिया। इस प्रकार कपिल, राकेश और मनुभाई को इस अनावश्यक, गंभीर होनी और उसमें होनेवाले फिज़ूल के पचड़े से बचा लिया। आज भी कपिल उस पुरानी घटना का आँखों देखा हाल हूबहू वर्णन कर सुनाता है और कीर्ति की अनुभवपूर्ण दूरंदेशी बुद्धि को अपनी अंजलि देता है । (34)

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