Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 44
________________ Dr. 19-07-2018 - 39 . . कीर्ति-स्मृति . " "नहीं, नहीं, सपना नहीं है, देव आये हुए हैं,श्री घंटाकर्ण महावीर....।" यह उत्तर देते हुए कीर्तिने, स्पष्टता-की कि तीन वर्ष पूर्व कलकत्ता में उसने नौ दिन उपवास कर के नवकार मंत्र का जाप किया । था और जैन शासनदेव श्री घंटाकर्ण महावीर की साधना की थी। ... उस अंधेरे कमरे में मैंने लाईट चालु की तो तुरंत कीर्ति बोल उठा: "बत्ती बंद कर दीजिये, देव को बत्ती पसंद नहीं है । अगरबत्ती जला कर टेबल पर रखिये और बैठ जाइये । देव अभी यहाँ पर खड़े हैं । आप चुपचाप बैठे रहें, मैं उनसे प्रश्न पूछना चाहता हूँ।" - हम उसकी इच्छा और सूचना के अनुसार लाइट बंद करके अगरबत्ती जलाकर बैठ गये। कुछ क्षण नीरव-निःशब्द व्यतीत हो गये । कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन कोई मानवेतर तत्त्व की उपस्थिति का कुछ भिन्न प्रकार का अनुभव हो रहा था । कुछ क्षणों के बाद अत्यंत मन्द स्वरों में कीर्ति के शब्द सुनाई देने लगे : "लिवर-एक्सट्रैक्ट बंद कर दिया जाये.... । लिख लो प्रतापभाई ! देव जो कह रहे हैं वह लिख लो...। मेरे रोग के लिए कह रहे हैं... लिखो (१) लिवर एक्स्टैक्ट बंद कर दिया जाये...(२)'नेचर क्योर' में उपचार किया जाय (३) अन्त में 'आयंबिल' करने से रोग चला जायेगा...।" यह सुनकर आश्चर्यचकित-सा मैं, त्वरा से, हाथ में जो भी कागज़ आये उन्हें उठाकार अन्धेरे में ही लिखने लगा । कीर्ति लिखाता रहा... "माँजी का आयुष्य अगले मार्च से दस साल है.... " "हम सभी भाइयों के साथ 'क' का सम्बंध स्वार्थपूर्ण है। "चन्दुभाई अत्यन्त संवेदनशील, भावनाशील व्यक्ति हैं। उन्होंने मेरा हित ही चाहा है, लेकिन मैं ही समझ नहीं सका हूँ।" इतना कहने के बाद कीर्ति ने हमसे कहा, "अब अगर आप देव से कोई प्रश्न पूछना चाहते हों तो पूछिए....।" और हमने प्रश्न पूछना शुरु किया। शुरू में मैं कुछ तर्कबुद्धि से पूछ रहा था, इस घटना पर श्रद्धा नहीं जाग रही थी मेरे मन में, केवल विश्वस्त होने के लिए पूछने की इच्छा हो रही थीं। मैंने आरम्भ किया और फिर माँजी ने भी पूछना शुरु किया। हमारे प्रश्न पूछने के बाद कीर्ति लेटे लेटे ही हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर मन में ही देवता से प्रश्न पूछता, उसकी यह मौन अवस्था कुछ क्षणों तक रहती और देवता से जो उत्तर प्राप्त होता वह हमें सुनाता और लिखाता था । लिखवाते समय उसका बोलने का ढंग, उसकी भाषा और वाणी का प्रवाह इतना तो विश्वास ज़रुर कराता था कि कोई असामान्य व्यक्ति उसे माध्यम बनाकर उसके द्वारा बोल रहा है, उत्तर दे रहा है। एक के बाद एक प्रश्न इस प्रकार हुए और ये उत्तर मिले : मैं (प्रताप): मेरे बारे में देव क्या कहते हैं ? उत्तर : आप दिल से पापी - बुरे नहीं हैं। | (39)

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