Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 34
________________ Dt. 19-07-2018 - 28 " . ..कीति-स्मृति .... निशाना साधने का । कीर्ति ने इन सब का यही अभिगम, अपने ढंग से अपने अहिंसक क्रान्ति-कार्य में अपना लिया था। इन सभी के परिणामस्वरूप कीर्ति ने अपने हृदय में श्रीमद् राजचंद्रजी के कुछ प्रेरक, मार्गदर्शक विचार-आदेश बिठाकर रखे थे जिनमें से एक दो थे: "तुम किसी भी प्रकार के व्यवसाय में हो, परंतु आजीविका हेतु अन्यायसंपन्न द्रव्य उपार्जन मत करना।" ___ "यदि आज तुम्हारे हाथों से कोई महान कार्य हो रहा हो तो तुम अपने सर्व सुखों का भी बलिदान "दे देना ।" ("पुष्पमाला":४६, ७४) . - ऐसे सुनहरे मार्गदर्शनों को दृष्टि सन्मुख रखकर कीर्ति अपने नीतिमय, न्यायसंपन्न धनार्जन . करने के एवं अन्य लोगों की सेवा करने हेतु अपना सुखत्याग तक करने के पथ पर चलने चिंतनरत, आयोजनरत एवं कार्यरत था, जैसा कि- उसके संपन्नतावाद-Richism से सभी को सुखी बनाने के महत्त्वपूर्ण अभिनव अभियान विषयक पूर्वकथित पत्र में उसने अपने साथी सुब्बा रेड्डी को लिखा था । (संदर्भ २९-७-१९५८ और ४-८-१९५८ के पत्र) उसकी बुद्धिमत्ता इतनी नूतनता-संशोधक एवं नवोत्पादक, नित्यनवोन्मेषशालिनी थी, कि उसने अपना सारा मौलिक क्रान्तिमार्ग, जे.पी. आदि के पचिह्नों पर होते हुए भी, स्वयं ही सूक्ष्मता एवं विशुद्धता से आयोजित कर रखा था । उसके सामने समस्त अनुशासनों एवं आवश्यक गुणों की अपेक्षाओं का सुंदर नकशा था, जिसमें समन्वय होता था तीनों "H" का - HEART (हृदय) HEAD (मस्तिष्क) एवं HAND (हस्त) का । उनमें से कुछ का उसने सुंदर ढंग से वर्गीकरण किया था, जैसे : 1. सख्त, कठोर कार्य एवं शरीरश्रम + गुप्त भूगर्भ प्रवृत्ति । 2. शरीर स्वास्थ्य : निसर्गोपचार, नैसर्गिक जीवन, शरीर-गठन व्यायाम एवं योग । 3. मंत्र जाप साधन एवं प्रार्थना आदि । 4. विनम्रता एवं अन्य लोगों के प्रति स्नेह-सद्भाव : दूसरों का स्वमानभंग, शोषण, अन्याय और __ अत्याचार-उत्पीडन कहीं नहीं। 5. उत्तम नीति के रूप में प्रामाणिकता की स्थापना । 6. अपने से पहले दूसरों को सहाय करने का और सुखी बनाने का अभिगम । . 7. किसी का द्वेष नहीं, सभी के प्रति प्रेम-विशुद्ध, निश्छल, नित्य प्रेम । 8. मानवतावाद, राष्ट्रवाद, देशभक्ति । 9. अभावग्रस्तों (दीन-दरिद्रों) को सहाय पहुंचाना, ऊपर उठाना और धनिकों से - न माने, न दें ___तो - धन प्राप्त कर जरुरतमंदों, गरीबों में बाँट देना । 10. सभी रूपों ओर प्रकारों में विशाल विराट अहिंसा एवं शोषण-विहीनता का पालन । । . .. . (28)

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