Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 26
________________ ...कीर्ति-स्मृति . Dt. 19-07-2018-20 | सभी क्रान्तिकारियों की भाँति ! - जहाँ तक मेरा प्रश्न था, मेरी भारत-यात्रा के बाद एक ओर से मैं हैदराबाद में मेरा इन्टरमीडियेट कॉमर्स एवं आर्ट्स का अध्ययन और साथ में संगीतगुरु पूज्य 'नादानंद' बापूरावजी के चरणों में तथा सरकारी संगीत-नृत्य विद्यालय में शास्त्रीय संगीत का अध्ययन कर रहा था, तो दूसरी ओर से पूर्व उल्लिखित पारिवारिक एन्जीनीयरींग कंपनी की पार्टनरशीप से भी संबद्ध था। इसी बीच, योगानुयोग एवं किसी पूर्वसंस्कार-ऋणानुबंध संबंध से रेपल्ली-आंध्र-में महान परंतु गुप्त रही ज्ञानयोगिनी चिन्नम्मा माताजी के पास दो बार रह आया था । दूसरी बार की मेरी यात्रा के दौरान चिन्नम्मा उनके पावन दिव्य सान्निध्य की निश्रा में उनके अलौकिक अगमनिगम के आध्यात्मिक अनुभवों से, जो कि उनके 12+6= 18 अठारह वर्षों के बाह्यांतर मौन-जीवन से निष्पन्न .. थे, अभिभूत और प्रभावित होने में मैं सद्भागी बना था । उन अनुभूतियों की अकथ कहानी कुछ तो अभिव्यक्त करने की थोड़ी-सी, व्यर्थ भी सही, चेष्टा मुझसे "चिन्नम्मा के चरणों में" के लेखन के उपक्रम में अन्यत्र हुई है। इस के बाद फिर उडिसा-आंध्र पदयात्राओं के बाद तमिलनाडु की पदयात्रा में विनोबाजी के पास मेरा दूसरी बार जाना हुआ। वहाँ कुछ काल तक पदयात्रा कर फिर ७ जून १९५६ के स्मरणीय दिन पर (कि जिस दिन वे गांधीजी से प्रथम बार मिले थे १९१६ में !) कांजीवरम् में बाबा से मेरी महत्त्वपूर्ण, सुदीर्घ बैठक हुई - अनेक विषयों की चिंतना में । ये सारी भी शब्दबद्ध हुई है मेरी पुस्तक "स्थितप्रज्ञ के संग" में एवं कुछ सामयिकों में । इस चिंतना में बाबा विनोबाजी ने समुचित मार्गदर्शन देकर मेरे आगे के संगीत, साहित्य, दर्शन के अध्ययन हेतु अनुमति एवं आशीर्वाद प्रदान किये, जिसके परिणाम स्वरूप ही भविष्य में मेरे हाथों से 'प्रकटी भूमिदान की गंगा' आदि आकाशवाणी रूपक, २०,००० बीस हजार बालकों का साबरमती सरिता पट पर 'ॐ तत्सत्' का विशाल समूहगान एवं बाद में "ईशोपनिषद् + ॐतत्सत्' L.P. रिकार्ड आदि चिरंतन साहित्यिकदार्शनिक-संगीत विषयक कार्य संपन्न होनेवाले थे। तत्पश्चात् १९५६ में विनोबाजी के आशीर्वादों को लेकर अहमदाबाद प्रज्ञाचक्षु पू. पंडितश्री सुखलालजी की विद्या-निश्रा पाने में सद्भागी बन सका था और उपर्युक्त विषयों का गहन अध्ययन कर पाया था। पंडितजी के सामीप्य में ही फिर मैं विशेष सद्भागी बन पाया था-गुरुदेव रवीन्द्रनाथ एवं महात्मा गांधीजी के अंतेवासी एवं महान रहस्यवादी संत पूज्य गुरुदयाल मल्लिकजी का निकट सान्निध्य एवं प्रेम पाने का । मल्लिकजी ही कीर्ति के जीवन की अंतिम दिनों में रक्षा एवं ऊर्ध्वगमन के सर्वाधिक निमित्त बने थे, जिस विषय में आगे देखेंगे। अहमदाबाद में पू. पंडितजी की निश्रा में दो वर्ष एकाग्ररूप से B.A. का अध्ययन एवं उनकी किंचित् सेवा करने का लाभ पाकर, उनकी एवं पू. मल्लिकजी की प्रेरणा, अनुमति ओवं आशीर्वादों से ग्रीष्म १९५८ में विश्वभारती शांतिनिकेतन पहुँचा - 'विद्याभवन' में M.A. अनुस्नातक हिन्दी साहित्य एवं संगीतभवन में रवीन्द्र संगीत सीखने हेतु । कीर्ति के निकट कलकत्ता में रहकर उसका (20)

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