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Dt. 19-07-2018.10
कीर्ति
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दसवें दिन प्रातःकालीन नवकारजापै के बाद कीर्ति स्वयं एक भारी-भरकम सिलिंग फॅन उठाकर टेबुल स्टूल पर चढ़कर छत नीचे उसका फिटिंग कर रहा था.... पर यह क्या ?... इस परिश्रम से . आज वह थक गया और नीचे बैठ गया फिटिंग करने के बाद.... उसकी थकान उसे मजबूर कर रही थी उपवास तोड़ देने.... उसने कदम उठाये हॉटल की ओर.... घर तो उसके था नहीं और न कोई उसकी चिंता करनेवाले स्वजन, जो कि उसे भली भाँति उपवास का 'पारणा' करवा सके । एक परिचित हॉटेल पर पहुँचकर उसने ऑर्डर दिया राइस प्लैट का..... प्लैट टेबुल पर आई.... प्रथम कोर हाथ में उठाये उसके पूर्व तो दिखाई दिया सामने उसका एक परिचित मित्र फटेहाल कपड़ों में, आंखों में आँसू भरे हुए, अत्यंत दयनीय दशा में कीर्ति से दयार्द्र प्रार्थना करता हुआ: - "कीर्ति ! मुझे बड़ी मेहरबानी कर माफ कर दे... मैंने तुम्हें धोखा देकर तुम्हारा घोर विश्वासघात किया है तुम्हारे पसीने के पैसों की उठांतरी करके..... । मेरे इस पाप ने मेरा सर्वनाश कर दिया है... अब मैं दर दर की ठोकरें खाता भटक रहा हूँ..... एक सप्ताह से मैंने कुछ खाया नहीं हैं.... मेरे महापाप भरे विश्वासघात के लिये मुझे क्षमा कर दे और मुझे कुछ खाने के लिये दे....।"
करुणात्मा कीर्ति यह सुनकर खड़ा हो गया.... उसकी आँखों में भी सहानुभूति के आँसू छलक पड़े.... मौनपूर्वक उसे क्षमा दे दी और अपनी बिन-खायी राईस प्लैट उसके सामने धर देकर, उसके इस विश्वासघाती मित्र प्रेमचंद को डाँट का एक शब्द भी कहे बिना उठकर, चला गया हॉटेल के काउन्टर पर और चुका दिया राईसप्लैट के छः आने का बिल जाते जाते ।
__उस समय उस दिन उसकी जेब में इतने ही पैसे थे । अपने लिये दूसरी राईसप्लैट का ऑर्डर वह दे नहीं सका । एक और दिन का उपवास उसे हो गया ।
विश्वासघाती कृतघ्न के प्रति भी क्षमा और दया रखना कीर्ति के करुणामय लक्ष्य की विशालता थी । कैसा दर्दे-दिल सहृदय इन्सान !
दूसरे दिन उसने अपने उपवास छोड़े.... उसकी नवकार मंत्र की जपमाला भी ठहर गयी.... स्वयं आरंभ की हुई अपनी वह महान साधना वह पूर्ण नहीं कर सका । परंतु अपूर्ण होते हुए भी उसके आश्चर्यकारी परिणाम सामने आये उसकी साधना-सिद्धि दर्शानेवाले एक अभूतपूर्व जिनशासन देवता के प्रत्यक्षीकरण-प्रसंग में, उसके देहत्याग के १४ दिन पूर्व । कीर्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति के परिणाम स्वरूप स्वर्ग के देवता को ऊपर से उतरकर तब उसके सामने आना पड़ा था-कीर्ति के और हमारे सारे परिवार के कई रहस्यों का उद्घाटन करते हुए !
परंतु इस अद्भूत, प्रेरणाप्रद-घटना का वर्णन हम अंत भाग में करेंगे - २३-१०-१९५९ शुक्रवार के दिन घटित यह प्रसंग उसकी "साधना-सिद्धि दर्शक-परिचायक अभूतपूर्व जिनशासन देवता का प्रत्यक्षीकरण" के शीर्षक से । ।
कलकत्ता में कीर्ति के उपर्युक्त उपवास + नवकारमंत्र साधना के विषय में, उन दिनों हम सभी को हैदराबद और अहमदाबाद या अन्यत्र निवास करने के दिनों में, कोई समाचार नहीं थे, सिता कि उसकी एवं उसकी फैक्ट्री की सामान्य गतिविधियों के ।
शायद अपनी हर प्रवृत्ति को, उसकी सिद्धि के पूर्व गोपनीय रखना यह उसकी प्रकृति थी...
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