Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 23
________________ ..... .. .कीर्ति-स्पतिः । Dt. 19-07-2018 - 17 प्रकरण-४ Chapter-4 क्रान्तिकारों और कलाकारों की क्रान्ति-नगरी में क्रान्ति-कार्य-विस्तार कीर्ति ने इलेक्ट्रिकल पंखों के फिटिंग में अच्छी निपुणता प्राप्त करने के कारण इसे अपना - धनार्जन क्षेत्र बना लिया था। मैंने उसे इस कार्य में अधिक प्रोत्साहित और स्थिर करने हेतु न केवल अपनी ओर से अधिक पैसे भिजवाये, परंतु सहानुभूतिपूर्ण उदार हृदय अग्रज चंदुभाई एवं सदा ममतामयी माँ की ओर से भी । कलकत्ते में सतत सेवा-संवेदनाशील मनुभाई सदा की भाँति कीति को सर्व प्रकार की सहायता करते रहे, अपने समय समय पर के मूल्यवान मार्गदर्शन के साथ । सभी की इन सहायताओं एवं सद्भावनाओं के साथ कीर्ति ने बड़े उल्लासपूर्वक अपने क्रान्तिलक्षी व्यापार-कार्य का सुव्यवस्थित ढंग से शुभारम्भ किया, जो दिन-ब-दिन विकसित होता रहा । रेड्डी उसके साथ ही था । छोटे स्तर पर उसे अपनी इलैक्ट्रिक कॉइल वाइन्डींग फैक्ट्री हेतु अधिक काम करनेवालों की आवश्यकता थी । कीर्तिने पूरी जाँच-पड़ताल के बाद गरीब से गरीब परंतु प्रामाणिक एवं किसी प्रकार के व्यसनों-धूम्रपान तक के - से मुक्त मज़दूरों-कारीगरों को चुना । उनमें से अधिकतर बेकार और जरुरतमंद दीन बिहारी और बंगाली थे, जो केवल "सत्तु" खाकर जीते थे और कभी कभी रीक्षा खींचकर कमा पाते थे, वह भी अगर उन्हें 'किराये पर पाने का सौभाग्य मिला' तो ! इन काम करनेवाले मजदूरों को भर्ती करने के बाद रेड्डी और कीर्ति ने उन्हें अपेक्षित तालीम देना शुरु किया । काम में महारत के उपरान्त उन्हें व्यसनरहित एवं नीतिमय, प्रामाणिक, भ्रष्टताविहीन जीवन बनाने हेतु तैयार किया गया। काफी समय तक उन सब के इस प्रकार के आवश्यक वर्तात का अवलोकन करने के बाद उनको उदारतापूर्वक अपनी छोटी-सी फैक्ट्री के एक नये प्रस्थान में जोड़ा गया । कीर्ति के हृदय में लंबे अर्से से रही हुई जयप्रकाशजी की 'फैक्ट्री-दान' की योजना उसने कार्यान्वित कर दी। उसके उपर्युक्त सभी समर्पित एवं नीतिमान मज़दूर बना दिये गये उसकी छोटीसी फैक्ट्री के हिस्सेदार ! सभी उसके अपने समान !! उसने उन सब के बर्ताव एवं कठोर कार्य के चुस्त नियम बनाये। उसका यह नूतन प्रयोग सफल होता गया और उत्पादन के साथ अच्छे परिणाम भी लाने लगा। कीर्ति कुछ संतुष्ट था, परंतु अभी तो उसके मिशन को दूर तक जाना था, दूर, आत दूर । कीर्ति-रेड्डी स्वयं तो विशुद्धतम जीवन जी रहे थे- न केवल धूम्रपान, मद्यपान, मांसाहारादि रहित, परंतु पूरे "सात व्यसनों" से रहित, जो कि जैनाचार में बतलाये गये हैं और जिनका पालन करना आसान नहीं था वर्तमान नगरों के जीवन में । उक्त व्यसनों के अतिरिक्त उनमें वर्जित थे ... जुआ खेलना, आखेट-शिकार-हिंसा, परस्त्रीगमन आदि आदि। इन सभी की ओर समझा समझाका (17)

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