Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 13
________________ Dt. 19-07-2018 7 अमरेली से अन्य स्थानों के परिवर्तनों में कहीं खो चुका है। इन सभी में अनेक महत्त्व के साहित्यिक एवं राष्ट्रीय गरिमा के विषय भरे हुए थे, जो काल की गर्ता में समा गये हैं, जिसका हम सब को रंजो-गम रहा है। इन साहित्यकारों के बाल्यकाल के हमारे कई संस्मरणों में, घर पर अनेकदा पधारते हुए कवि लेखकों, राष्ट्रनेताओं, संगीतकारों, आदि आदि की बैठकों और महफ़िलों की प्रेरक यादें वैसी की वैसी स्मृतिपट पर छाई हुई हैं। मौसेरे भाई एवं सुप्रसिद्ध गुजराती राष्ट्रीय शायर श्री झवेरचंद मेघाणी तो पिताजी से कलापी का केकारव' शीर्षक प्रसिद्ध गुर्जरग्रंथ का अध्ययन करते थे, अनेक बार अपने घर पर ठहरते थे और तब उन्हें अपनी बुलन्द आवाज़ में राष्ट्रीय गीतों को ललकारते हुए हमने कई बार सुना था और उनसे ये सब गुनगुनाना हमने सीखा भी था । कीर्ति-स्मृति अन्य साहित्य-संगीत सेवियों एवं राष्ट्रसेवकों में, जो तब युवा ही थे, सर्वश्री मोहनलाल महेता 'सोपान', मनुभाई पंचोली 'दर्शक', वजुभाई शाह, मोहन युद्धकवि, रतुभाई अदाणी, आदि कई तो निकट के स्वजन ही बन चुके थे। संगीतकारों में पोरबंदर से अनेकबार आकर घर पर शास्त्रीय संगीत की महफिल जमाते हुए मस्तगायक श्री मल्लभाई और उनका गाया हुआ राग मालकौंस हमारी स्मृति की गहराई में सदा छाये रहे । इन सब का अनेकरंगी प्रभाव, हम दोनों के अंतस्-चित्त पर बना रहा । राष्ट्रीयता के एवं क्रान्ति के संस्कार कीर्ति ने सर्वाधिक पकड़े और आत्मसात् किये । यहाँ तक कि भारत की आज़ादी के सर्व क्रान्तिवीर उसके आदर्श और उपास्य बन गये । उन दिनों के अमरेली से हरिपुरा कांग्रेस में शायद १९३६ में), धोलेरा सत्याग्रहादि में हम बालकों के भी पिताजी एवं अग्रज बंधुओं के साथ जाने के एवं तत्पश्चात् १९४२ के 'भारत छोड़ो' आंदोलन के अमरेली में देखे हुए प्रेरक क्रान्ति दृश्य वैसे के वैसे ताज़ा हैं । स्थलसीमा संकोचवश, कीर्ति की पश्चादभूमिका का संकेत करने हेतु, यहाँ इतना निर्देश ही पर्याप्त होगा। प्रारम्भिक शालाकीय शिक्षा दोनों की वहीं हुई । १९४५ में हम दोनों बंधुओं का भी हमारे दूसरे अग्रज एवं सिविल एन्जीनीयर पू. चंदुभाई की नौकरी के कारण, सारे परिवार सह अमरेली से पूना (में) स्थानांतरण हुआ । पूना में फिर अंग्रेजों के विरुद्ध के स्वातंत्र्य संग्राम के, आगाखान महल में कस्तुरबा - महादेव देसाई की समाधि के बार बार दर्शन के एवं स्वयं गांधीजी के निवासकक्ष पर (डो. दिनशा मेहता के 'नेचर क्योर' में ) 'भारत पथक स्काउट के एक स्वयंसेवक' के रूप में गांधीजी की १५ दिन तक ( १९४५-१९४६ में शायद ) सेवा के महान लाभ की प्राप्ति के सुवर्णाधिक गौरवपूर्ण विद्यार्थी काल के संस्मरण हम दोनों बंधुओं की प्रेरणा संपदा-से बन गये । इस विषय में "पूना में पंद्रह दिन बापू के साथ" शीर्षक मेरा अलग लेख है । इस विद्यार्थीकाल में पूना से फिर अमरेली और अमरेली से वापस पूना दो बार आना-जाना और पढ़ना हुआ पूना के गुजराती मिडल स्कुल में कीर्ति का एवं आर.सी.एम. गुजराती हाईस्कूल में मेरा बड़ा स्मरणीय विद्या-काल बीता, जिस में संगीत, चित्र, खेल, व्यायामादि के अतिरिक्त उपर्युक्त गांधीजी निक्षा सेवा की भी जीवन-निर्णायक शिक्षाएँ प्राप्त हुई तो अमरेली में पारेख महेता विद्यालय - (7)

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