Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 06
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 6
________________ जानती है, आदि अनुभूति क्या नहीं करते हैं ? सही क्या समझना ? बात ठीक है, उपरोक्त कर्त्ता क्रिया के नियमानुसार विचार किया जाये तो देखना, जानना, सुनना, चखना आदि क्रियाएं हैं, अतः इन क्रियाओं का कर्त्ता कोई होना ही चाहिए । अब हा प्रश्न कर्त्ता का । कर्त्ता किसे मानें ? आंख को या आत्मा को । भाषा के दृष्टिकोण से यदि किसी को भी पूछा जाय कि - " आंख देखती है, या आंख से देखते हैं ? कान सुनता है या कान से सुनते हैं ? जीभ चखती है या जीभ से चखते हैं ? इत्यादि । सोचिए ! कौन सी भाषा सही लगती है ? यदि आंख ही देखती होती तो मृत शरीर (शव) की आंख भी देखती । अर्धनिमिलित आंख अर्थात्. आधी आंख खुली रखकर सोने वाला भी सब कुछ देखता, या आंख स्वतन्त्र रूप में बाहर पड़ी - पड़ी भी देख लेती। वैसे ही कान भी स्वतन्त्र रूप से सुन लेता, परन्तु ऐसा नहीं देखा जाता है । मृत शरीर के आंख, नाक, कानादि अंग होते हुए भी नहीं देखता है, नहीं सुनता है, इत्यादि । क्योंकि मृत शरीर जड़ है, अजीव है और अजीव में ज्ञाताद्रष्टा भाव नहीं है । वह न तो देखता है और न ही सुनता है। आंख देखती है के बजाय आंख से देखते हैं, कान सुनता है के बजाय कान से सुनते हैं, नाक सूंघता है के बदले नाक से सूंघते हैं यह भाषा ज्यादा शुद्ध है । उसी तरह मन सोचता है के बदले मन से सोचते हैं यह भाषा शुद्ध- सही एवं आत्म-सिद्धि की पुष्टिकारक है । यहां करण अर्थ में "से" शब्द से क्रिया का कर्त्ता जीव (आत्मा) सिद्ध होता है । अतः मुख्य रूप से देखना, जानना, सुनना, सोचना आदि क्रियाओं का कर्त्ता आत्मा ही कहलाएगी । इसलिए जानने, देखने वाला ज्ञाता द्रष्टा भाववान् कर्त्ता आत्मा ही ही है । इन्द्रियां और मन सहायक साधन हैं, माध्यम है जिनके द्वारा आत्मा अपनी जानने-देखने आदि की क्रिया करती है । दर्शन शब्द के विविध प्रर्थ शब्द अनेकार्थ होते हैं । एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं । संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार “दृश-प्रेक्षणे" इस धातु से देखने अर्थ में "दर्शन" बना है । यह शब्द क्रिया सूचक है । अतः यह देखना क्रिया है । अंग्रेजी में दर्शन शब्द से "VISION” अर्थ भी लिया जाता है । दृश्यमान पदार्थ से दृश्य अर्थ में "VISION” कहते हैं । दर्शन क्रिया सूचक से दर्शनीय अर्थात् देखने योग्म पदार्थ भी लिए जाते हैं । और भी क्रिया-कर्म सूचक कई अर्थ इस प्रकार हैं - “ शब्दचिन्तामणि" आदि कोषगत विविध अर्थ - चक्षुरक्षीक्षणं नेत्रे, नयनं दृष्टिरम्बकम् । लोचनं दर्शनं दृक् च तत्तारा तु कनीनिका ॥ अभिधान कोष ३ / २३९ कर्म की गति न्यार

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