Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 06
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 45
________________ वेरण निद्रा तु क्या थी आवी, सूइ सूइ ने सारी रात जगावी ॥१॥ . निद्रा कहे हुं तो बाली ने भोली, मोटा मोटा मुनिवर ने नाखु छुढोली ।।२।। निद्रा कहे हुं तो जमडा नी दासी, एक हाथ मां मुक्ति ने बीजा हाथमां फांसी ।।३॥ चालो चेतनजी सिद्धाचल जहए, आदीश्वर भेटी पावन थइए ॥४॥ आनंदघन कहे सुण भाइ बनिया, आप मुआ पछी डूब गई दुनियां ॥५॥ .. आनंदघन योगी निद्रा को कह रहे है कि हे वैरी ! मेरी (आत्मा की) दुश्मन निद्रा ! तुं कहां से आ गई ? क्यों आई ? मेरी साधना में तेरी कोई आवश्यकता नहीं है । बहुत वर्षों की साधना के बाद मैंने यह जागृत अवस्था पाई है, और उसे तूं क्यों बिगाड़ रही है ? निद्रा कह रही है, मैं तो भोली-भाली हूँ. आपके आमंत्रण से आयी हूं, दूसरी तरफ मैं यम की दासी के रूप में "चिर निद्रा" के नाम से प्रसिद्ध हैं । मेरे एक हाथ में मुक्ति भी है और दूसरे हाथ में फांसी भी है। इस प्रकार अध्यात्म योगियों ने निद्रा को हितकर नहीं मानी। . ठीक अध्यात्म योगियों के विपरीत संसारी गृहस्थ नींद न आए तो नींद के लिए छटपटाता है। उसे लाने के लिए हजार उपाय करता है। नींद की गोलियां और इन्जेक्शन भी लेता है । किसी भी तरह वह नींद में पड़ा रहना चाहता है । एक दृष्टि से सोचने पर बात सही भी लगती है कि-जिसके सामने आत्म कल्याण का कोई लक्ष्य ही नहीं है वह विचारा नींद के लिए प्रवृत्ति नहीं करेगा तो क्या करेगा ? नीतिकार कहते हैं कि जो सोवत है सो खोवत है। जो जागत है सो पावत हैं। अर्थात् जो नींद-आलस-प्रमाद में पड़ा रहता है वह बहुत कुछ लाभ खोता है। उसके हाथ से लाभ-शुभ के कई प्रसंग चले जाते हैं, और जब जागता है तब सुनकर पछताता है । परन्तु कहते है कि कर्म की गति न्यारी ४३

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