Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 06
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 49
________________ (१) निद्रा (२) निद्रा-निद्रा (३) प्रचला (४) प्रचला-प्रचला (५) थीणाद्धि (स्त्यानद्धि-स्त्यान-गृद्धि)। (१) निद्रा-सुह-पडिबोहा निद्दा । सुखप्रबोधस्वभावावस्थाविशेष रूपत्वं. सुखजागरणस्वभावस्वापावस्थाविशेषरूपत्वं वा निद्राय लक्षणम् । जिस प्रकार की नींद में आसानी से जग सकते हैं, उसे निद्रा कहते हैं । जिस नींद में सुख रूप से जागने का स्वभाव हो अथवा जगाने पर एक क्षण में आसानी से जो जाग जाय उसे प्रथम प्रकार की निद्रा कहते हैं। (२) निद्रा-निद्रा-निद्दा निद्दा य दुक्ख-पडिबोहा। दुःखजागरणस्वभावस्वापावस्थ.विशेषरूपत्वं, दुःखप्रतिबोधस्वापावस्थाविशेषरूपत्वं वा निद्रानिद्राय लक्षणम् ।। नींद की. एक विशेष अवस्था जिसमें बड़ी मुश्किल से, बहुत टटोलने पर उठे, उसे दूसरे प्रकार की निद्रा कहते हैं। (३) प्रचला–पयला ठिओवविदुस्स । स्थितोपस्थितस्वापावस्थाविशेषरूपत्वं प्रचलाय लक्षणम् । जिसमें खड़े-खड़े या बैठे-बैठे भी नींद आवे उसे प्रचला प्रकार की नींद कहते हैं। (४) प्रचला-प्रचला-पयल-पयला उ चंकमओ। चङक्रमणविषयक स्वापावस्था विशेषरूपत्वं प्रचलाप्रचलाय । लक्षणम् । चलते-चलते जो नींद आती है उसे प्रचला-प्रचला नामक नींद कहते हैं । (५) थीणाद्धि--दिण-चिति अत्थ-करणी थीणद्धी अद्ध-चक्कि-अद्ध-चला। दिनचिन्तितार्थाऽऽभिकाङ्क्षाविषयकस्वापावस्थाविशेषरूपत्वं, जानववस्थाध्यवसितार्थसंसाधनविषयकाभिकाङ् क्षानिमित्तकस्वापावस्थाविशेषरूपत्वं वा सत्यानद्धलक्षणम् ॥ कर्म की गति न्यारी

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