Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 06
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 37
________________ दर्शन में प्रतिस्पर्धा दशार्णभद्र राजा एक बार श्री महावीर प्रभु के दर्शनार्थ समवसरण में जा रहे थे । उनके मन में ऐसा विचार आया कि "आज दिन तक अनुपम रिद्धि-सिद्धि सहित कोई न गया हो इस तरह मैं प्रभुदर्शनार्थ जाऊं ।" अपने विचारानुसार दशार्णभद्र ने रिद्धि-सिद्धि का खूब प्रदर्शन किया । देवलोक के स्वामी इन्द्रमहाराजा दशार्णभद्र राजा के अहं भाव को तोड़ने के लिए प्रतिस्पर्धा में आए। वे भी दशार्णभद्र राजा से दुगुनी रिद्धि-सिद्धि करके सामने की दिशा में आने लगे । अपने प्रतिस्पर्धी को देखकर दशार्णभद्र राजा अपनी रिद्धि-सिद्धि दुगुनी करने लगे । यह देखकर इन्द्र ने अपनी रिद्धि-सिद्धि चौगुनी कर दी । इस तरह रिद्धि-सिद्धि का विस्तार करने में दोनों के वीच दुगुनी - चौगुनी की स्पर्धा जम गई । अन्त में जब दोनों ही प्रतिस्पर्धी समवसरण में पूर्व - पश्चिम द्वार से आ रहे थे, तब इन्द्र की अपने से चौगुनी रिद्धिसिद्धि देखकर, अपनी हार मानते हुए दशार्णभद्र राजा ने अनुपम वैराग्य भाव से सर्व रिद्धि-सिद्धि का त्याग करके प्रव्रज्या (दीक्षा) अंगीकार करके रजोहरण (धर्मध्वज) लेकर प्रभु के दर्शन करके वंदना की । यह दृश्य देखकर इन्द्र ने भी अपनी हार मानते हुए दशार्णभद्र मुनि की वंदना की और कहा " हे महात्यागी ! रिद्धि-सिद्धि दुगुनी करनी तो मुझे आई, परन्तु आपकी तरह रिद्धि-सिद्धि का त्याग करना मुझे नहीं आया । अतः सही अर्थ में आप जीते।" इस तरह भी प्रभु के दर्शनवंदन किये । ऐसे अनेक दृष्टांत शास्त्रों में भरे पड़े हैं । देखने की अजब शक्ति बर्तमान काल की बात है कि यूरिगेलर नाम के एक व्यक्ति ने कई वैज्ञानिकों की उपस्थिति में १५ फुट रखे हुए एक टेबल को बिना हाथ लगाये, बिना किसी साधन एवं माध्यम के, सिर्फ आँखों से टक टकी लगाकर देखने मात्र से टेबल को हटाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रख दिया । दूसरी बार १५-२० फुट दूर रखे हुए स्टील के एक चम्मच को बिना हाथ लगाये देखने मात्र से मोड दी, एवं आलमारी की स्टील की एक ताली, एवं थाली को दूर से ही मात्र दृष्टि से देखते हुए मोड़कर तोड़ दिया । यह प्रयोग वैज्ञानिकों की उपस्थिति में हुआ, जिसमें मात्र आंखों से देखने की करामात थी, परन्तु यह कोई जादू नहीं था । Extra Sensory perception की छपी हुई पुस्तक में 6th sense (E. S . P . ) के ऐसे कई प्रयोग दिये गये हैं । भारतीय तांत्रिक प्रयोगों में त्राटक मुद्रा के ऐसे कई प्रयोग मिलते हैं । कर्म की गति न्यारी ३५

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