Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 06
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ अचक्षु दर्शन शब्द प्रयोग करने से च के अतिरिक्त चारों इन्द्रियां ली है। इस तरह पांचों ही इन्द्रियां आत्मा तक दृश्य भेजती हैं । आत्मा को पदार्थो का दर्शन कराने का काम करती है। दर्शन (देखने) से ज्ञान होता है । OPS CPI भाख -चमडा इन्द्रिया से ज्ञान या दशन : प्रश्न यह उठता है कि-इन्द्रियों से ज्ञान होता है या दर्शन होता है ? इन्द्रियां शान कराती है या दर्शन कराती है ? इन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रिय कहें या दर्शनेन्द्रिय ? चिन्तक ज्ञानी ही इस विषय में स्वयं चिन्तन करें । विचार करने पर ऐसा लगता है कि -आत्मा स्वयं ज्ञान-दर्शन आदि युक्त ज्ञाता-द्रष्टा भाववान हैं। यदि आत्मा स्वयं कर्म रहित होती तो बिना इन्द्रियों की मदद से ही स्वयं अनन्त ज्ञान-दर्शन गुण से अनन्त पदार्थो का पूर्ण सम्पूर्ण ज्ञान-दर्शन कर लेती। परन्तु ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीयादि कर्म ग्रस्त आत्मा कर्मावरण के कारण अनन्त ज्ञान-दर्शन नहीं कर पाती है। वह इन्द्रियों की मदद से ही ज्ञेय-दृश्यमान पदार्थों का ज्ञान-दर्शन करती है । अतः इन्द्रियां आत्मा के लिए जान सहायक होने के कारण ज्ञानेन्द्रियों कहलाती है। ज्ञेय पदार्थों का ज्ञान इन्द्रियां स्वयं नहीं करती है, क्योंकि ज्ञान करना यह १० कर्म की गति न्यारी

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68