Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 06
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 14
________________ इस तरह पांचों इन्द्रियां २३ विषयों का ज्ञान दर्शन स्वयं न करती हुई आत्मा को कराने में सहायता करती है | जीभ - चमडी स्पर्शनेन्द्रिय ® घ्राणेन्द्रिय नाक - आंख रसनेन्द्रिय कान चक्षुरिन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय चक्षु चक्षु दर्शन कर्मग्रन्थकार महर्षि ने कर्मग्रन्थ में दर्शनावरणीय कर्म में चक्षुदर्शन और अदर्शन ये दो भेद बताये हैं । इसका अर्थ बताते हुए लिखा है कि- १. चक्षुदर्शन यहां चक्षु = अर्थात् आंखे - नेत्र, और अचक्षु शब्द में "अ" अक्षर निषेधार्थक है, अर्थात् चक्षु नहीं परन्तु चक्षु के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियां यह अर्थ किया है । इस तरह चक्षु अचक्षु इन दो विभागों में पांचों इन्द्रियां विभाजित की हैं । १२ कर्म की गति न्यारी

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