Book Title: Kalyan Kalika Part 1 Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti JalorPage 10
________________ वर्षामां तो एक बे वर्प मां जो तेमने न मळाय तो मने चेन न पडतु. एटलुज नहि पण हु जालोर जात्यारे गमे तेवु काम होय पण तेमना सानिध्यमां ऐक वे दीवस रहेवानु राखतो. जैन संघमां पू प. कल्याणविजयजी गणिनु स्थान पुरे तेवी इतिहासना विषयमा काइ व्यक्ति नथी ते कहेवामां काइ अतिशयोक्ति नथी आजथी ३१ वर्ष पहेलां आ कल्याणकलिका पुस्तकनु संपादन मारे त्यां पू. आ. देवश्री विजय भद्रकरसूरिजी महाराजनी निश्रामां थयु हतु. आना पुनर्मुद्रण माटे पू. मुनिराजश्री वत्रसेनविजयजी म. द्वारा आ काम सोपायु. आजे ओफसेटनी सुविधा होवाथी छपायेल कल्याणकलिकामां जे शुद्धिपत्रक हतु ते प्रथमां सुधारी पुनर्मुद्रण करेल छे. आ ग्रंथने यथावत् काइपण सुधारा-वधारा विना मुद्रित करवामां आव्यो छे केमके आ ग्रंथ निर्माण पाछळ जे परिश्रम व पू. प. श्री कल्याणविजयजीऐ को छे, तेथी सविशेष परिश्रम करवानु रहेतु नथी. मदिरोना शिल्प, विधिविधान अने मुहुर्तादि माटे आ ग्रंथ सविशेष उपयोगी होवाथी अने तेनी खुब मागणी होवाथी तेमना शिष्य पू. मुनिराज मुक्तिविजयजी म. तथा पू मुनिराज मित्रविजयजीनी प्रेरथाथी प्रकाशित करवामां आब्यो छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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