Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 8
________________ आगमग्रथो, शिलालेखा अने विविधसाहित्यना निरीक्षण मनन अने चिंतनद्वारा तेमणे श्रमण भगवान महावीरना क्रमबद्ध चौमासां तेमां थयेला उपसा विगेरेनु जे तारण कर्यु छे तेवू आज सुधी काइए पण कयु नथी. वीरनिर्वाण और जैन काल गणना ग्रथ तो एटला वो आधारभुत ग्रंथ मनायो छे के तेने आधाररुप गणी इतिहासविदाए पातान संशोधन कयु छे. तेमणे लखेला लगभग ३० प्रथा पाछळ प्राचीन अर्वाचीन विविध प्रथानु वांचन निरीक्षण मनन अने संकलन सविशेष जोवा मळे छे. तेमना हाथे मुद्रित थयेल . एकेक ग्रथनी सविस्तर आलोचना करवामां आवे तो तेमना विशाळ ज्ञान अनुभव अने निरीक्षण प्रत्ये अहोभाव प्रगटावी दरेकने नतमस्तक चनावे तेम छे. पू. पन्यास कल्याणविजयजी म. साहेबने आचार्य पद लेवा माटे खुवज आग्रह करवामां आव्या हतो परतु कोइना पण आग्रहने वश न थतां हमेशां जे पद उपर हु छु ते वरावर छे तेम कही आचार्य पदवी लेवानु टाळयु हतु. पू. ५. कल्याणविजयजी गणिमां विशिष्ट अन्वेषण शक्ति ऐवी आत्मसात् हती के विहारमा काइपण गाममांथी पसार थाय तो ते गामने पादरे उभेला पाळीयो पछी ते गमे तेनो होय तो पण तेनो लेख तेनो इतिहास अने तेनी पाछळ रहेलु रहस्य आ बधार्नु तेओ अन्वेषण करता. नानामां नाना गाममां जाय तो ते गामनु दहेरासर.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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